________________
जेतवन
२८५ उपट्रानसाला-खुरकनिकाय के उदान ग्रंथ में आता है"एक समय' भगवान् श्रावस्ती में अनाथपिडिक के प्राराम जेतवन में विहार करते थे। उस समय भोजन के बाद, उपस्थानशाला में इकट्ठ बैठे, बहुत से भिक्षुओं में यह कथा होती थी। इन दोनों राजाओं में कौन बड़ा...है, राजा मागध सेनिय बिंबिसार अथवा राजा प्रसेनजित् कोसल ।...उस समय ध्यान से उठकर भगवान् शाम के वक्त उपट्ठानशाला में गए और नियत आसन पर बैठे।"
इसकी अटकथा में प्राचार्य धर्मपाल लिखते हैं
'भगवान् ने...भोजनोपरांत...गंधकुटी में प्रवेश कर फलसमापत्ति सुख के साथ दिवस-भाग को व्यतीत कर ( सोचा )...अब चारों परिषद् ( भिक्षु, भिक्षुणी, उपासक, उपासिका ) मेरे आने की प्रतीक्षा में सारे विहार को पूर्ण करती बैठी है, अब धर्मदेशना के लिये धर्म-सभा-मंडल में जाने का समय है...।' ___इससे मालूम होता है कि उपस्थानशाला (१) जेवतन में भिक्षुओं के एकत्र होकर बैठने की जगह थी; (२) तथागत सायंकाल को उपदेश देने के लिये वहाँ जाते थे। अट्ठकथा से इतना
और मालूम होता है-(३) इसी को धर्म-सभा-मंडल भी कहते थे। (४) यह गंधकुटी के पास थो; (५) सायंकाल को धर्मोपदेश सुनने के लिये भिक्षु, भिक्षुणी, उपासक, उपासिका सभी यहाँ इकट्ठे होते थे; (६ ) मंडल शब्द से करेरिमंडल की भाँति ही यह भी शायद फूस के छप्परों से प्रतिवर्ष छाई जानेवाली इमारत थी; (७) ये छप्पर शायद गंधकुटी के पासवाली भूमि पर पड़े थे, इसी लिये 'सारे विहार को पूर्ण करती' शब्द पाया है।
(१) तेन खो पन समयेन उपट्टानसालार्य समिसिन्नानं सनिपतितानं अयमन्तराकथा उदपादि।-उदान, २-२ ।
(२) उदानट्ठकथा, पृ. ७२ (सिंहललिपि)
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com