________________
२८२
नागरीप्रचारिणी पत्रिका साला ), उपसंपदामालक । यद्यपि सललघर जेतवन के भीतर लिखा मिलता है; किंतु ज्ञात होता है कि जेतवन से यहाँ जेतवन-राजकाराम अभिप्रेत है और सललघर राजकाराम की ही गंधकुटी का नाम था । ___करेरिकुटिका और करेरिमंडलमाल-दीघनिकाय' में आता है कि एक समय भगवान जेतवन में अनाथपिडिक के पाराम, करेरिकुटिका में, विहार करते थे। भोजन के बाद करेरिमंडलमाल में इकट्ठा बैठे हुए बहुत से भिक्षुओं में पूर्वजन्म-संबंधी धार्मिक चर्चा चल पड़ी। भगवान ने उसे दिव्य श्रोत्र-धातु से सुना। इस पर टीका करते हुए आचार्य बुद्धघोष ने लिखा है___ करेरि वरुण वृक्ष का नाम है। करेरि वृक्ष उस कुटी के द्वार पर था, इसी लिये करेरिकुटिका कही जाती थी; जैसे कोसंब वृत्त के द्वार पर होने से कोसंबकुटिका। जेतवन के भीतर करेरिकुटि, कोसंबकुटि, गंधकुटि, सललघर ये चार बड़े घर ( महागेह ) थे । एक एक सौ हजार खर्च करके बनवाए गए थे। उनमें सललघर राजा प्रसेनजित् द्वारा बनवाया गया था, बाकी अनाथपिडिक गृहपति द्वारा। इस तरह अनाथपिडिक गृहपति द्वारा स्तंभों के ऊपर बनवाई हुई देवविमान-समान करेरिकुटिका में भगवान विहार करते थे ।
सूत्र से हमें मालूम होता है कि जेतवन के भीतर (१) करेरिकुटिका थी, जो संभवत: गंधकुटी, कोसंबकुटी की भाँति सिर्फ
(१) दी. वि. महापदानसुत्त, XIV. Vol. I. ( P. T. S. ed.) (२) दी. नि. अट्ठकथा, II, पृ० २६६ ।
एक समयं भगवा सावस्थियं विहरति जेतवने अनाथपिडिकस्स पारामे करेरिकुटिकायां । अथ खो संबहुलाने भिक्खून पच्छाभत्तं विंडपात-पटिक्कचानं करेरि-मंडल-माले सन्निसिनानं सन्निपतिताने पुब्बे-निवास-परिसंयुत्ता धम्मिय-कथा उदपादि-'इति पुब्बे-निवासो इति पुब्बेनिवासोति' ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com