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________________ जेतवन २८१ सार अनाथपिडिक ने जेतवन के भीतर ये चाजें बनवाई - विहार, परिवेण, कोठा, उपस्थानशाला, कप्पियकुटी, पाखाना, पेशाबखाना, चंक्रम (= टहलने की जगह ), चंक्रमणशाला, उदपान (= प्याऊ), उदपानशाला, जंताघर (= स्नानगृह ), जंताघरशाला, पुष्करिणी और मंडप । जातक-अट्ठकथा' (निदान ) के अनुसार इनका नाम इस प्रकार है-मध्य में गंधकुटी, उसके चारों तरफ अस्सी महास्थविरों के अलग अलग निवासस्थान, एक कुडुक (= एकतला), द्विकुडक, हंसवट्टक, दीघसाला, मंडप आदि तथा पुष्करिणी, चंक्रमण, रात्रि के रहने के स्थान और दिन के रहने के स्थान । चुल्लवग्ग के सेनासनक्खंधक (६ ) से हमें निम्न प्रकार के गृहों का पता लगता है-- उपस्थानशाला-उस समय भिक्षु खुली जगह में खाते समय शीत से भी, उष्ण से भी कष्ट पाते थे। भगवान् से कहने पर उन्होंने कहा- मैं अनुमति देता हूँ कि उपस्थानशाला बनाई जाय, ऊँची कुरसीवाली; ईट, पत्थर या लकड़ी से चिनकर; सीढ़ो भी ईट, पत्थर या लकड़ी की; बाँह-प्रालंबन भी; लीप-पोतकर, सफेद या काले रंग की गेरू से सँवारी, माला लता, चित्रों से चित्रित, खूटी, चीवर-बाँस चीवर-रस्सी के सहित । जेतवन में भी ऐसी उपस्थानशाला थी, जिसका वर्णन सूत्रों में बहुत प्राता है। जेतवन की यह उपस्थानशाला लकड़ी की रही होगी तथा नोचे ईटे बिछी रही होगी। जेतवन के भीतर हम इन इमारत का वर्णन पाली स्रोत से पाते हैं-करेरिकुटिका, कोसंबकुटी, गंधकुटी, सललघर, करेरिमंडलमाल, करेरिमंडप, गंधमंडलमाल, उपठानसाला (= धर्मसभामंडप), नहानकोटक, अग्गिसाला, अंबलकोटक (= प्रासनसाला, पानीय (1) जातक, १: ८ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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