________________
जेतवन
२७७
To the east of the convent about 100 paces is a great chasm; this is where Devadutta went down alive into Hell after trying to poison Buddha. To the south of this, again is a great ditch; this is the place where the Bhikshu Kokali went down alive into Hell after slandering Buddha. To the south of this, about 800 paces, is the place where the Brahman woman Chancha went down alive into Hell after slandering Buddha. All these chasms are without any visible bottom ( or bottomless pits ). ( Beal Life of H. Ts. pp. 93 and 94 ).
इनमें ऐतिहासिक तथ्य संभवतः इतना ही हो सकता है कि मरणासन्न देवदत्त को अंत में अपने किए का पश्चात्ताप हुआ और वह बुद्ध के दर्शन के लिये गया, किंतु जेतवन के दर्वाजे पर ही उसके प्राण छूट गए । यह मृत्यु पहले भूमि में धँसने में परिपत हुई । फाहियान ने उसे पृथिवी के फटकर बीच में जगह देने के रूप में सुना । ह्य ून चाङ् के समय वह स्थान अथाह चंदवक में परिणत हो गया था। किंतु इतना तो ठीक हो है कि यह स्थान (१) पूर्वकोटक के पास था; (२) पुष्करिणी के ऊपर था; (३) विहार (गंधकुटी) से १०० कदम पर था; और (४) चंचा के धँसने का स्थान भी इसके पास ही था ।
चंचा के धंसने का स्थान द्वार के बाहर पास ही में अट्ठकथा में भी आता है, किंतु कोकालिक के धँसने का कहीं जिक्र नहीं आता । बल्कि इसके विरुद्ध उसका वर्णन सुत्तनिपात में इस प्रकार हैकोकालिक ने जेतवन में भगवान् के पास जाकर कहा - भंते, सारिपुत्त मोग्गलान पापेच्छु हैं, पापेच्छाओं के वश में हैं ।
भगवान्
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com