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________________ २७६ नागरीप्रचारिणी पत्रिका भी क्रोध नहीं है। वे शास्ता वधिक देवदत्त पर, डाकू अंगुलिमात्त पर, धनपाल और राहुल पर-सब पर ... समान भाववालं हैं। तब वह चारपाई पर लेकर निकले । उसका भागमन सुनकर भिक्षुओं ने शास्ता को कहा। शास्ता ने कहा-भिक्षुओ! इस शरीर से वह मुझे न देख सकेगा ...। अब एक योजन पर पा गया है, प्राधे योजन पर, गावुत (= गव्यूति)भर पर, जेतवन-पुष्करिणी के समीप...! यदि वह जेतवन के भीतर भी आ जाय, तो भी मुझे न देख सकेगा। देवदत्त को ले आनेवाले जेतवन-पुष्करिणी के तीर पर चारपाई को उतार पुष्करिणी में नहाने को गए । देवदत्त भी चारपाई से उठ, दोनों पैरों को भूमि पर रखकर, बैठा । (और) वह वहीं पृथिवी में चला गया। वह क्रमश: घुट्टो तक, फिर ठेहुने तक, फिर कमर तक, छाती तक, गर्दन तक घुस गया। ठुड्डो की हड्डी के भूमि पर प्रतिष्ठित होते समय उसने यह गाथा कही____इन माठ प्राणों से उस अप्रपुद्गल ( = महापुरुष ) देवातिदेव, नरदम्यसाखी समंतचक्षु शतपुण्यलक्षण बुद्ध के शरणागत हूँ। वह अब से सौ हजार कल्पों बाद अहिस्सर नामक प्रत्यक बुद्ध होगा। -वह पृथिवी में घुसकर अवीचिनरक में उत्पन्न हुमा। इस कथा में ऐतिहासिक तथ्य चाहे कुछ भी हो, किंतु इसमें संदेह नहीं कि देवदत्त के जमीन में धंसने की जो किंवदंती फाहियान के समय ( पाँचवीं शताब्दी में ) खूब प्रसिद्ध थी उससे भी पहले की सिंहाली अट्ठकथाओ में यह बात वैसे ही थी, जिनके आधार पर फाहियान के समकालीन बुद्धघोष ने पाली अट्टकथा में इसे लिखा। फाहियान ने देवदत्त के धसने के इस स्थान को जेतवन के पूर्वद्वार पर राजपथ से ७० पद, पश्चिम ओर जहाँ चंचा के धरती में धंसने का उल्लेख किया है, लिखा है। _ न-चाङ ने इस स्थान के विषय में लिखा है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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