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________________ २७४ नागरीप्रचारिणो पत्रिका में गंधकुटी के द्वार का ऊपरी आधा भाग खुला है, जिससे यह भी पता लगता है कि किवाड़ ऊपर नीचे दो भागों में विभक्त होता था। गंधकुटो का नाम यद्यपि सैकड़ों बार आता है, किंतु उसका इससे अधिक विवरण देखने में नहीं मिलता। द्वारकाढक-हम पोछे (पृष्ठ २६०) कह चुके हैं कि अनाथपिंडिक के पहले बार लाए हुए कार्षापणे से जेतवन का एक थोड़ा सा हिस्सा बिना ढंका ही रह गया था, जिसे कुमार जेत ने अपने लिये मांग लिया और वहाँ पर उसने अपने दाम से कोठा बनवाया जिसका नाम जेतवनबाहिरकोष्ठक या केवल द्वारकोटक कहा गया है। यह गंधकुटो के सामने ही था, क्योंकि धम्मपद-पटकथा में आता है एक समय अन्य तीर्थिक उपासकों ने... अपने लड़कों को कसम दिलाई कि घर आने पर तुम शाक्यपुत्रीय श्रमणों को न तो वंदना करना और न उनके विहार में जाना। एक दिन जेतवन विहार के बहिारकोष्ठक के पास खेलते हुए उन्हें प्यास लगी। तब एक उपासक के लड़के को कहकर भेजा कि तुम जाकर पानी पिओ और हमारे लिये भी लाओ। उसने विहार में प्रवेश कर शास्ता को वंदना कर पानी पो इस बात को कहा । शास्ता ने कहा कि तुम पानी पीकर...जाकर औरों को भी, पानी पीने के लिये यहीं भेजो। उन्होंने आकर पानी पिया। गंधकुटी के पास का कुना हमें मालूम है। द्वारकोष्ठक से कुएं पर आते हुए लड़को को गंधकुटी के द्वार पर से देखना स्वाभाविक है, यदि दर्वाजा गंधकुटो के सामने हो । जेतवन-पोक्खरणी-यह द्वारफोटक के पास ही थो। जातकढकथा (निदान) में एक जगह इसका इस प्रकार वर्णन आता है एक समय कोसल राष्ट्र में वर्षा न हुई। सस्य सूख रहे थे। जहाँ-तहाँ तालाब, पोखरी और सरोवर सूख गए । जेतवन-द्वार कोष्ठक के समीप की जेतवन-पुष्करिणी का जल भी सुख गया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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