SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 278
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जेतवन २७३ सविस्तर वर्णन है । संभवत: यह परिवेण पहले और भी चौड़ा रहा होगा, और कम से कम बुद्धासन से उतना ही स्थान उत्तर और भी छूटा रहा होगा जितना कि No.k से बुद्धासन । इस प्रकार कुषाण काल की इमारत के स्थान पर की पुरानी इमारत, यदि कोई रही हो तो, दक्षिण तरफ इतनी बढ़ी हुई न रही होगी, अथवा रही ही न होगी । १ गंधकुटी कितनी लंबी-चौड़ी बी, यद्यपि इसके जानने के लिये कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता, तथापि एक आदमी के लिये थी, इस लिये बहुत बड़ी नहीं हो सकती। संभवत: Mo. No. 2 के बीच का ગમે बहुत कुछ पुरातन गंधकुटी के प्राकार को बतलाता है । गंधकुटी के दर्वाजे में किवाड़ लगा था, जिसमें भीतर से किल्ली ( सूचीघटिक ) लगाने का भी प्रबंध था । इसमें तथागत के सेाने का मंच था । इस मंच के चारों पैरों के स्थान को टुकथावालों ने 'अविजहित' कहा है। गंधकुटी के दर्वाजे द्वारा कई बातें का संकेत भी होता था । म० नि० अट्ठकथा में बुद्धघोष ने लिखा है - जिस दिन भगवान् जेतवन में रहकर पूर्वाराम में दिन को विहार करना चाहते थे, उस दिन बिस्तरा, परिष्कार भांडों को ठीक ठीक करने का संकेत करते थे । स्थविर (आनंद) झाडू देते, तथा कचड़े में फेंकने की चीजों को समेट लेते थे । जब अकेले पिंडचार को जाना चाहते थे, तब सबेरे ही नहाकर गंधकुटी में प्रवेश कर दर्वाजा बंदकर समाधिस्थ हो बैठते थे । जब भिक्षु संघ के साथ पिंडचार को जाना चाहते थे, तब गंधकुटी का आधी खुली रखकर... T जब जनपद में विचरने के लिये निकलना चाहते थे, तो एक-दो ग्रास अधिक खाते थे और सब काल चंक्रमण पर प्रारूढ़ हो पूर्व - पश्चिम घूमते थे ।" भरहुत के जेतवन- पट्टिका (१) धम्मपद - अट्ठकथा ४:४४ भी । २ ) सुत्त २६ । १८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy