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________________ २७२ नागरीप्रचारिणो पत्रिका जान पड़ता है, यह स्तूप वह स्थान है जहाँ बैठकर तथागत उपदेश दिया करते थे और इसी लिये उसे बार बार मरम्मत करने का प्रयत्न किया गया है। गंधकुटो-परिवेण में, भिक्षुओं के ही लिये नहीं, प्रत्युत गृहस्थों के लिये भी उपदेश होता था - "विशाखा, उपदेश सुनने के लिये, जेतवन गई। उसने अपने बहुमूल्य प्राभूषण 'महालतापसाधन' को दासी के हाथ में इसलिये दे दिया था कि उपदेश' सुनते समय ऐसे शरीर-शृंगार की आवश्यकता नहीं। दासी उसे चलते वक्त भूल गई । नगर को लौटते समय दासी आभूषण के लिये लौटी। विशाखा ने पूछा---टूने कहाँ रखा था ? उसने कहागंधकुटी-परिवेण में। विशाखा ने कहा--गंधकुटी-परिवेण में रखने के समय से ही उसका लौटाना हमारे लिये प्रयुक्त है।" आभूषण के छूटने का यह वर्णन विनय में भी पाया है। संभवत: बुद्धासन-स्तूप के पूर्व का स्तूप g इसी के स्मरण में है । सर जान कहते हैं - This stupa is coeval with the three buildings of Kushan Period, just described. ( ibid, p. 10 ). यह गंधकुटो-परिवेण बहुत ही खुली जगह थी, जिसमें हजारों आदमी बैठ सकते थे। बुद्धासन-स्तूप ( Stupa H ) गंधकुटो से कुछ अधिक हटकर मालूम होता है। उसका कारण यह है कि उपदेश के समय तथागत पूर्वाभिमुख बैठते थे। उनके पीछे भिक्षु-संघ पूर्व मुँह करक बैठता था और आगे गृहस्थ लोग तथागत की ओर मुंह करके बैठते थे। गंधकुटी-पमुख से बुद्धासन तक की भूमि भिक्षुओं के लिये थी। इसका वर्णन हमें उदान में३ मिलता है, जहाँ तथागत का पाटलिगाम के नए पावसथागार में बैठने का (१) धम्मपदकथा, ४:४४, विसाखाय वत्थु । (२)A. S. I. रिपोर्ट, १९१०-११ ई. (३) उदान-पाटलिगामियवग्ग (८।६), पृ० ८६, P. T. S. ed. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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