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नागरीप्रचारिणो पत्रिका सोपानफलक-गंधकुटो में जाने से पहले, मणिोपानफलक पर खड़े होकर, भिक्षु-संघ को उपदेश देने का भी वर्णन
आता है। अकाल में वर्षा कराने के चमत्कार के समय के वर्णन में आता है कि बुद्ध ने वर्षा करा, "पुष्करिणो में नहाकर लाल दुपट्टा पहन कमरबंद बाँध, सुगतमहाचीवर को एक कंधा (खुला रख) पहन, भिक्षु-संघ से चारों तरफ घिरे हुए जाकर गंधकुटी के आँगन में रखे हुए श्रेष्ठ बुद्धासन पर बैठकर, भिक्षु-संघ के वंदना करने पर उठकर मणिसोपानफलक पर खड़े हो, भिक्षु-संघ को उपदेश दे, उत्साहित कर सुरभि-गंधकुटी में प्रवेश कर..." यह सोपान संभवतः पमुख से गंधकुटी-द्वार पर चढ़ने के लिये था; क्योंकि अन्यत्र इस मणिसोपानफलक को गंधकुटो के द्वार पर देखते हैं-"एक दिन रात को गंधकुटो के द्वार पर मणिसोपानफलक पर खड़े हो भिक्षुसंघ को सुगतावाद दे गंधकुटी में प्रवेश करने पर, धम्मसेनापति ( = सारिपुत्र) भी शास्ता को वंदना कर अपने परिवेण को चले गए। महामोग्गलान भी अपने परिवेण को........."
गंधकुटी-परिवेण-मालूम होता है, पमुख थोड़ा ही चौड़ा था। इसके नीचे का सहन गंधकुटी-परिवेण कहा जाता था। इस परिवेण में एक जगह बुद्धासन रखा रहता था, जहाँ पर बैठे बुद्ध की वंदना भिक्षु-संघ करता था। इस परिवेण में बालू बिछाई हुई थी; क्योंकि मज्झिमनिकाय' अ. क० में अनाथपिंडिक के बारे में लिखा है कि वह खाली हाथ कभी बुद्ध के पास न जाता था; कुछ न होने पर बालू ही ले जाकर गंधकुटो के आंगन में बिखेरता था। अंगुत्तरनिकायट्ठकथा में, बुद्ध के भोजनोपरांत के काम का वर्णन करते हुए, लिखा है-"इस प्रकार भोजनोपरांतवाले कृत्य के समाप्त होने पर, यदि गात्र धोना (= नहाना)
(१) सुत्त १४३ की अट्ठकथा।
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