________________
२६६
जेतवन पाली स्रोत से हम कुछ नहीं पाते, वहाँ यह बात संतोष की है कि सहेट के अंदर के Mos. Nos.1, 2, 3, 5, 19 पाँचों ही विशेष मंदिरों का द्वार पूर्व मुख को है। इसी लिये मुख्य दर्वाजा भी पूर्व मुंह ही को रहा होगा। यहाँ एक छोटी सी घटना से, जिसको हम दे चुके हैं, मालूम होता है कि जब वे स्त्री-पुरुष पानी पीने के लिये जेतवन के भीतर घुसे, तब उन्होंने बुद्ध को गंधकुटी की छाया में बैठे देखा। 10. No. 2 के दक्षिण-पूर्व का कुआँ यद्यपि सर जान मार्शल के अनुसार कुषाण-काल का है, तो भी तथागत के परिभुक्त कुएँ की पवित्रता कोई ऐसी-वैसी नहीं, जिसे गिर जाने दिया गया हो। यदि इसकी ईटे कुषाण-काल की हैं, तो उससे यही सिद्ध हो सकता है कि ईसा की प्रारंभिक शताब्दियों में इसकी अंतिम मरम्मत हुई थी। दोपहर के बाद गंधकुटो की छाया में बैठे हुए, बुद्ध के लिये दर्वाजे की तरफ से कुएं पर पानी पीने के लिये जानेवाला पुरुष सामने पड़ेगा, यह स्पष्ट ही है।
गंधकुटी अपने समय की सुंदर इमारत होगी। संयुत्त निकाय की अट्ठकथारे में इसे देवविमान के समान लिखा है। भरहुट स्तूप के जेतवन-चित्र से इसकी कुछ कल्पना हो सकती है। गंधकुटी के बाहर एक चबूतरा था, जिससे गंधकुटो का द्वार कुछ
और ऊँचा था, जिस पर चढ़ने के लिये सीढ़ियाँ थीं । पमुख के नीचे खुला आँगन था। चबूतरे को 'गंधकुटि पमुख' कहा है। भोजनोपरांत यहाँ खड़े होकर तथागत भिक्षु-संघ को उपदेश देते हुए अनेक बार वर्णित किए गए हैं। मध्याह्नभोजनोपरांत भगवान् पमुख पर खड़े हो जाते थे, फिर सारे भिक्षु वंदना करते थे, इसके बाद उन्हें सुगतोपदेश देकर बुद्ध भी गंधकुटी में चले जाते थे।
(3) A.S.I. रिपोर्ट, 1910-11. (२) देव-संयुत्त ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com