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________________ जेतवन २६७ ई० पू० छठी शताब्दी की बनी इमारतों के ढाँचे में न जाने कितनी बार परिवर्तन हुमा होगा। तीर्थकाराम बनाने के वर्णन में खंभे उठाने और बढ़ई से ही काम आ भ करने से हम जानते हैं कि उस समय सभी मकान लकड़ी के ही अधिक बनते थे, जंगलों की अधिकता से इसमें आसानी भी थी। ऐसी हालत में लकड़ी के मकानों का कम टिकाऊ होना उनके चिह्न पाने के लिये और भी बाधक है। तथापि मौर्य-तल से नीचे खुदाई करने में हमें शायद ऐसे कुछ चिह्नों के पाने में सफलता हो। प्रस्तु, इतना हम जानते हैं कि जहाँ कहीं बुद्ध कुछ दिन के लिये निवास करते थे वहाँ उनकी गंधकुटी' अवश्य होती थी। यह गंधकुटी बहुत ही पवित्र समझी जातो थी, इसलिये सभी गंधकुटियों की स्मृति को बराबर कायम रखना स्वाभाविक है। जेतवन के नकशे में हम Monasteries Nos. 1,2, 3, 5, और 19 ऐसे एक विशेष तरह के स्थान पाते हैं। Mo. Nos.19 के पश्चिमी भाग के बीच की परिक्रमावाली इमारत के स्थान पर ही राजकाराम में बुद्ध की गंधकुटी थी। आगे हम जेतवन के भीतर की चार इमारतों में 'सललागार' को भी एक बतलाएँगे। दीघनिकाय में आता है-"एक बार भगवान् श्रावस्ती के सललागारक में विहार करते थे।" इस पर अटुकथा में लिखा है-"सलल (वृत्त) की बनी गंधकुटी में" संयुत्तनिकाय में भी-"एक समय आयुष्मान् अनुरुद्ध श्रावस्ती के सललागार में विहार करते थे।" इस पर अट्ठकथा में-"सलल वृक्ष-मयी पर्णशाला, या सलल वृक्ष के (१) बुद्ध के निवास की कोठरी को पहले विहार ही कहते थे। पीछे, मालूम होता है, उस पर फूल तथा दूसरी सुगंधित चीजें चढ़ाई जाने के कारण वह विहार 'गंधकुटी' कहा जाने लगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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