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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
काराम बनवाने का निश्चय किया । घूस देकर राजा को अपनी राय में करके, बढ़इयों को बुलाकर, उन्होंने प्राराम बनवाना आरंभ कर दिया । इन उद्धरणों से हमें पता लगता है - ( १ ) जेतवन के पोछे की और पास ही में, जहाँ से काम करनेवालों का शब्द गंधकुटी में बैठे बुद्ध को खूब सुनाई देता था, तीर्थकों ने अपना आराम बनाना आरंभ किया था । (२) जिसे राजा ने पीछे बंद करा दिया । (३) राजा ने वहीं आराम बनवाकर भिक्षु संघ को अर्पण किया । ( ४ ) यह आराम प्रसेनजित् द्वारा बनवाया पहला आराम था । नशे में देखने से हमें मालूस होता है कि विहार नं० १६ जेतवन के पीछे और गंधकुटो से दक्षिण-पश्चिम की ओर है । फासला गंधकुटी से प्राय: ६०० फीट, तथा जेतवन की दक्षिण - पूर्व सीमा से बिल्कुल लगा हुआ है । इस प्रकार का दूसरा कोई स्थान नहीं है, जिस पर उपर्युक्त बातें लागू हों। इस प्रकार Mo. No.19 ही राजकाराम है, जो मुख्य जेतवन से अलग था ।
इस विहार का हम एक जगह और (जातकटुकथा में ) उल्लेख पाते हैं । यहाँ उसे जेतवन- पिट्ठि विहार अर्थात् जेतवन के पोछे वाला विहार कहा है। मालूम होता है, जेतवन और इस 'पिट्ठि विहार' के बीच में होकर उस समय रास्ता जाता था दोनों विहारों के बीच से एक मार्ग के जाने का पता हमें धम्मपदटुकथा से भी लगता है । राजकाराम जेतवन के समीप था | उसे प्रसेनजित् ने बनवाया था । एक बार उसमें भिक्षु, भिक्षुषी, उपासक और उपासिका, चारों की परिषद् में बैठे हुए, बुद्ध धर्मोपदेश कर रहे थे । भिक्षुओं ने आवेश में आकर "जीवें भगवान् जीवें सुगत" इस तरह जोर से नारा लगाया । इस शब्द से कथा में बाधा पड़ी । यहाँ स्पष्ट मालूम होता है कि यह राजकाराम अच्छा लम्बा-चौड़ा था ।
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