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________________ २६४ नागरीप्रचारिणी पत्रिका अभिधानप्पदीपिका से यहाँ भेद पड़ता है ४ वीहि (ब्रोहि) = गुंजा २ गुंजा = माषक माषक कर्प (= कार्षापण ) का सोलहवां भाग है। विनय में २० मासे का कहापा (= कार्षापण) लिखा है। समंतपासा. दिका ने इस पर टीका करते हुए इससे कम वजनवाले रुद्रदामा आदि के कार्षापणों का निर्देश किया है तो भी हमें यहाँ उनसे प्रयोजन नहीं। हम इतना जानते हैं कि पुराने पंच मार्क के कार्षापण सिक्कों का वजन प्रायः १४६ न के बराबर होता है। यही वजन उस समय के कर्ष का भी है। आजकल भारतीय सेर ८० तोले का है, और तोला १८० येन के बराबर होता है। इस प्रकार एक मागध खारो आजकल के ४१८ सेर के बराबर, अर्थात प्रायः १ मन होगी और कोसलक खारी ४ मन के करीब । करीम का संस्कृत पर्याय खारीक अर्थात् खारी भर बीज से बोया जानेवाला खेत (तस्य वापः, पाणिनि ५:१:४५) है। पटना में पक्के - मन तेरह सेर धान से आजकल कितना खेत बोया जा सकता है, इससे भी हमें, जेतवन की भूमि का परिमाण, एक प्रकार से, मिल सकता है। राजकाराम ( सललागार )-अब हमें जेतवन की सीमा के विषय में एक बार फिर कुछ बातों को साफ कर देना है। हमने पीछे कहा था कि Monastery No. 19 जेतवन खास के भीतर नहीं था। संयुत्त-निकाय में आता है, एक बार भगवान् श्रावस्ती के राजकाराम में विहार करते थे। उस समय एक हजार भिक्षुणियों का संघ भगवान् के पास गया। इस पर अटकथा ने लिखा है-राजा (१) पाराजिका, २ । (२) सोतापत्ति संयुत्तं IV Chapter II सहस्सक or-राजकारामवग्गो V, 360. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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