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________________ जेतवन ४ कुडव या पसत ( पसर) = १ पत्थ ४ पत्थ = १ आळूहक १ दो १ माणी = १ खारी ४ श्राळूहक = ४ दो ४ माणी - ४ मागधक पत्थ ४ को ० पत्थ को० ० प्रा० ४ ४ को ० दो० ४ को ० मा० २० खारी १६ द्रोण = खारी विनय में ४ कहापण का एक कंस लिखा है । फंस को कर्ष मान लेने पर यह वजन और भी चौगुना हो जायगा, अर्थात् १६ मन से भी ऊपर । ऊपर के मान में २० खारी का एक तिलवाह, अर्थात् तिलेों भरी गाड़ी माना है, जो इस हिसाब से अवश्य ही गाड़ी के लिये असंभव हो जायगा । सुक्त० नि० अटुकथा में कोसलक परिमाण इस प्रकार है । = = = = कोसलक पत्थ को० ० आढ़क को० दोण को० मानिका ४ कुडव = प्रस्थ ४ प्रस्थ = प्राढक = द्रोण ५ गुंजा १६ माष ४ कर्ष Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat २६३ ४ प्राढक = खारी । १ तिलवाह ( = तिलसकट अर्थात् तिल से लदी गाड़ी ) = वाचस्पत्य के उद्धरण से यह भी मालूम होता है कि ४ पल एक कुडव के बराबर है । लीलावती ने पल का मान इस प्रकार दिया है— भाष कर्ष पल www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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