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________________ २६० नागरीप्रचारिणी पत्रिका के लिये काफी न हुआ । गृहपति ने और हिरण्य (= अशर्फी) लाने के लिये मनुष्यों को प्राज्ञा की। राजकुमार जेत ने कहा-बस गृहपति, इस जगह पर मत बिछोओ। यह जगह मुझे दो, यह मेरा दान होगा। गृहपति ने उस जगह को जेत कुमार को दे दिया। जेत कुमार ने वहाँ कोठा बनवाया। अनाथपिडिक गृहपति ने जेतवन में विहार, परिवेण, कोठे, उपस्थानशाला, कप्पिय-कुटो, पाखाना, पेशाबखाना, चंक्रम, चंक्रमणशाला, उदपान, उदपानशाला, जंताघर, जंताघरशाला, पुष्करिणियाँ और मंडप बनवाए। भगवान् धीरे धीरे चारिका करते श्रावस्ती, जेतवन में पहुँचे। गृहपति ने उन्हें खाद्य भोज्य से अपने हाथों तर्पित कर, जेतवन को अागत अनागत चातुर्दिश संघ के लिये दान किया। अट्ठकथाओं में जेतवन का क्षेत्रफल आठ करीष लिखा है । अनाथपिंडक ने 'कोटिसंथारेना(कार्षापों की कोर से कोर मिलाकर) इसे खरीदा था। ई० पू० तृतीय शताब्दी के भरहूट स्तूप में भी 'कोटिसंठतेन केता' उत्कीर्ण है। अत: यह निश्चय-पूर्वक कहा जा सकता है कि कार्षापण बिछाकर जेतवन खरीद करने की कथा ई० पू० तीसरी शताब्दी में खूब प्रसिद्ध थो । ___पाली ग्रंथों में जेतवन की भूमि आठ करीष लिखी है। 'करीसं चतुरम्मणं' पालिकोष अभिधम्मप्पदीपिका (१६७) में आता है। डाक्टर रीस डेविड्स ने 'अम्मण' (सिंहलो अमुणु, सं० अर्मण) को प्राय: दो एकड़ के बराबर लिखा है। इस प्रकार सारा क्षेत्रफल ६४ एकड़ होगा। पंडित दयाराम साहनी ने ( १६०७-८ की Arch. S. I., p. 117) लिखा है The more conspicuous part of the mound at the present is 1600 feet from the north-east corner to (१) देखो उपयुक चुल्लवग्ग की अट्ठकथा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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