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जेतवन
२५६ हैं, पातिमोक्ख को छोड़ विनयपिटक के सबसे पुराने भाग हैं और इनका प्राय: सभी अंश अशोक ( तृतीय संगीति ) के समय का मानना चाहिए। इस खंधक की प्राचीनता की एक बड़ी स्पष्ट बात यह है कि इसमें प्राय: सभी जगह शुद्धादन को 'सुद्धोदन सक' कहा गया है। चुल्लवग्ग' को कथा यो है__"अनाथपिडिक गृहपति राजगृह के श्रेष्ठी का बहनोई था । एक बार अनाथपिडिक राजगृह गया। उस समय राजगृह के श्रेष्ठी ने संघ सहित बुद्ध को निमंत्रित किया था। अनाथपिंडिक को बुद्ध के दर्शन की इच्छा हुई। वह अधिक रात रहते ही घर से निकल पड़ा और सीवद्वार से होकर सीतवन पहुँचा। उपासक बनने के बाद उसने सावत्थी में भिक्षु संघ सहित बुद्ध को, वर्षा-वास करने के लिये, निमंत्रित किया। अनाथपिडिक ने श्रावस्ती जाकर चारों ओर नजर दौड़ाई और विचार किया कि भगवान् उस स्थान में विहार करेंगे, जो ग्राम से न बहुत दूर और न बहुत समीप हो, आने जाने की प्रासानी हो, आदमियों के पहुँचने योग्य हा, दिन में बहुत जमघट न हो और रात में एकांत और ध्यान के अनुकूल हो। अनाथपिडिक ने राजकुमार जेत के उद्यान को देखा जो इन लक्षणों से युक्त था। उसने राजकुमार जेत से कहा-आर्यपुत्र! मुझे अपना उद्यान आराम बनाने के लिये दो राजकुमार ने कहा कि वह (कहापणों की) कोटि (= कोर) लगाकर बिछाने से भी अदेय है। अनाथपिंडिक ने कहा-आर्यपुत्र ! मैंने आराम ले लिया। बिका या नहीं बिका इप्तके लिये उन्होंने कानून के मंत्रियों से पूछा। महामात्यों ने कहा
आर्यपुत्र ! आराम बिक गया, क्योंकि तुमने मोल किया। फिर अनाथपिडिक ने जेतवन में कोर से कोर मिलाकर मोहरें बिछा दों। एक बार का लाया हुआ हिरण्य द्वार के कोठे के बराबर थोड़ी सी जगह
(१) सेनासनक्खन्धक, पृ० २५४ ।
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