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हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय की । हिंदुओं के जीवन को उन्होंने विजेता की ऊँचाई से नहीं बल्कि सहृदयता की निकटता से देखा। उनकी विपत्ति के लिये उनके हृदय में सहानुभूति का स्रोत उमड़ पड़ा। अपने सधर्मियों की उठी हुई तलवार के प्रहार को उन्होंने अपने ही ढंग पर रोकने का प्रयत्न किया। उन्होंने उनकी तर्कबुद्धि पर असर डालने का प्रयत्न नहीं किया, उनके हृदय की भावुकता को उहोप्त कर यह काम करना चाहा। हिंदू-हृदय की सरल सुषमा को उन्होंने उनके समक्ष उद्. पाटित कर मुस्लिम हृदय के सौंदर्य को प्रस्फुटित करना चाहा । अतएव उन्होंने मौलाना रूमी की मसनवी के ढंग पर हिंदू जीवन की मर्म-स्पर्शिणी कहानियाँ लिखकर भारतीयों की बद्धमूल संस्कृति की मनोहारिणो व्याख्या की। हिंदी की ये पद्य-कहानियाँ अँगरेजी साहित्य के रोमांटिक प्रांदोलन की समकक्ष हैं। इन कहानियों का लिखा जाना कब और किसके द्वारा प्रारंभ हुआ, इसका प्रमी ठीक ठोक पता नहीं। सबसे पुराना ज्ञात प्रेमाख्यानक कवि मुल्ला दाऊद मालूम होता है जो अलाउदोन के राजत्वकाल में वि० सं० १४६७ के प्रासपास विद्यमान था। परंतु मुल्ला दाऊद भी प्रादि प्रेमाख्यानक कवि था या नहीं, नहीं कह सकते। उसकी नूरक
और चंदा की कहानी का हमें नाम ही नाम मालूम है। कुत. बन की मृगावती पहली प्रेम-कहानी है जिसके बारे में हम कुछ जानते हैं । यह पुस्तक सिकंदर लोदी के राजत्वकाल में संवत् १५५७ के लगभग लिखी गई थी जब कि परस्पर-विरोधी संस्कृतियों का समझना सबसे अधिक आवश्यक जान पड़ता था। परंतु मृगा. वती में इस प्रकार की कहानी लिखने की कला इतनी कुछ विकसित है कि उसे भी हम इस प्रकार की पहली कहानी नहीं मान सकते । कुतबन के बाद मंझन ने मधु-मालती, मलिक मुहम्मद जायसी ने पदमावत और उसमान ने चित्रावली लिखो। इन प्रेम-कहानियों
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