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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
जो हो, इस बात को सब विद्वान् मानते हैं कि सूफी मत का दूसरा उत्थान, जिसका विकास फारस में हुआ, अधिकांश में हिंदू प्रभावों का परिणाम है । यहाँ पर हमारा उसी से अधिक संबंध है । इस प्रकार सूफी मत का उदय अरब में और विकास फारस में बहुत कुछ भारतीय संस्कृति के प्रभाव से हुआ । उनका अद्वैतमूलक सर्वात्मवाद भारतीय दर्शन का दान है । नियोप्लेटोनिक सिद्धांतों ने उनकी दार्शनिक तृषा को उभाड़ा प्रवश्य होगा, परंतु उनके सिद्धांतों के अध्ययन से जान पड़ता है कि उसकी शांति भारतीय सिद्धांतों से ही हुई । जन्मांतरवाद, विरक्त जीवन, फरिश्तों के प्रति पूज्य भाव ( बहु देव - वाद ) ये सब इस्लाम के विरुद्ध हैं और सूफी संप्रदाय को बाहरी संसर्ग से प्राप्त हुए हैं । इनमें से विरक्त जीवन तथा फरिश्ता - पूजन में ईसाई प्रभाव मानना ठीक है परंतु जन्मतिरवाद स्पष्ट ही भारतीय है । उनका 'फना' भी बौद्ध 'निर्वाण' का प्रतिरूप है । परंतु बौद्ध निर्वाण की तरह स्वयं साध्य न होकर वह 'मनमारण' के द्वारा द्वैतभावना का नाश कर 'बड़ा' अथवा 'अपरोक्षानुभूति' का साधन है । फकीर बायज़ीद ने 'फना' का सिद्धांत अबू अली से सिंघ में सीखा था अबू अली को प्राणायाम की विधि भी मालूम थी, जिसे वे पास - ए - अनफास कहते थे । सूफियों पर भारतीय संस्कृति का इतना प्रभाव पड़ा था कि उनके दिल में मूर्ति के लिये भी विरोध न रह गया था और वे 'बुत' के परदे में भी ख़ुदा को देख सकते थे । प्रभाव चाहे जहाँ से प्राया हो, इतना स्पष्ट है कि हिंद विचारपरंपरा और सूफी विचार- परंपरा में अत्यंत अधिक समानता थी ।
प्रसिद्ध सूफी
विचार- परंपरा की इस समानता ने स्वभावत: उन्हें हिंदुओं की और प्राकृष्ट किया । उन्होंने हिंदुओं से खूब मेल-जोल बढ़ाया । हिंदू साधु का उन्हें सत्संग प्राप्त हुआ, हिंदू घरों से भी उन्होंने भिक्षा प्राप्त
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