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हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय १६ ने अध्ययन और अन्वेषण से जो कुछ पता लगाया, उसका लंबा चौड़ा विवरण लिखा। यद्यपि यह विवरण अब लभ्य नहीं है, तो भी उसका संक्षेप इन्न नदीम की किताबुल फेहरिस्त में सुरक्षित है। इन्न नदोम ने विवरण के लिखे जाने के ७०८० वर्ष बाद अपना संक्षेप तैयार किया था। इस संक्षेप से पता चलता है कि इस विवरण के लेखक ने हिंदू धर्म के सिद्धांतों के दार्शनिक मूल तत्स्व को अच्छी तरह से समझ लिया था। अरयों को हिंदू धर्म का साधारण ज्ञान तो पहले ही से रहा होगा अन्यथा वे उसके प्रगाढ़ परिचय के लिये लालायित न होते। कहना न होगा कि भारत में धर्म और दर्शन का अन्योन्याश्रय-संबंध है। सूफी धर्म पर शंकर के कट्टर अद्वैत वेदांत का असर नहीं दिखाई देता है, इससे यह परिणाम न निकालना चाहिए कि सूफी विचारधारा के निर्माण में हिंदू विचारधारा का कोई हाथ नहीं है। भारत में भी वेदांत के अंतर्गत शांकर मत का विकास बहुत पोछे हुमा । संभव है, नौस्टिसिम्म और नियो-प्लेटोनिम्म ने भी सूफी मत के उपर प्रभाव डाला हो। परंतु मिस्टर पोकाक ने अपनी पुस्तक इंडिया इन ग्रीस ( यूनान में भारत ) में दिखलाया है कि यूनान भारतीय प्रभाव से ओत-प्रोत है। कुरान ने विरक्ति का निषेध किया है । इसके विरोध में जिन कुछ लोगों ने मिलकर सन ६२३ में तपोमय जीवन बिताने का निश्चय किया, उन्हें सुफी मानना भी ठोक नहीं। सूफी मत की विशेषता केवल तपोमय जीवन न होकर परमात्मा के प्रति अनन्य प्रेम-भावना है, जिससे समख संसार उन्हें परमात्मा-मय मालूम होता है, जिसके मागे अंध-विश्वास और अंध-परंपरा कुछ भी नहीं ठहरने पाते और जिसका प्राधार अद्वैवमूलक सर्वात्मवाद है।
(5) नदवी-अरव और भारत के संबंध,! . १६७ ।
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