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________________ नागरीप्रचारिणी पत्रिका . में भारत की पश्चिमोत्तर सीमा को पार कर लिया था। महायान धर्म, जिसमें बुद्ध धर्म ने भक्तियोग, और दर्शनशास्त्र को बहुत कुछ अपना लिया था, ईसा की पाँचवीं शताब्दी में पश्चिमोत्तर भारत से, बाहर कदम रख चुका था। फाहियान को खूटान में उसके दर्शन हुए थे। डाक्टर स्टीन की खोजों से फाहियान का समर्थन होता है । ई० सन् ७१२ में अरबों ने सिंध-विजय की । अरब विजेता भारत से केवल लूट-पाट का माल ही नहीं ले गए, प्रत्युत भारतीय संस्कृति में उन्हें जो कुछ सुंदर और कल्याणकर मिला, उससे भी उन्होंने लाभ उठाया। भारतीय संस्कृति, भारतीय विज्ञान, भारतीय दर्शन सबका उन्होंने समादर किया और अरब को ले गए। इसी शताब्दी में, अरब में, सूफी मत का उदय हुआ। सूफी शब्द का पहला उल्लेख सीरिया के ज़ाहिद अबू हसन की रचनाओं में मिलता है, जिसकी मृत्यु ई० सन् ७८० में हुई। सन् ७५६ से ८०६ तक बगदाद के अब्बासी सिंहासन पर मंसूर और हारूँ रशीद सदृश उदार खलीफा बैठे, जिन्होंने विद्या और संस्कृति को अपने यहाँ उदारता-पूर्ण प्रश्रय दिया। अपने बरामका मंत्रियों की सलाह से उन्हें इस संबंध में बड़ी सहायता मिलती थी। बरामका लोग पहले बौद्ध थे, पीछे से उन्होंने इस्लाम धर्म को ग्रहण कर लियारे । उनका भारतीय संस्कृति से आकृष्ट होना स्वाभाविक ही था। सन् ७६० से ८१० तक याहिया बरामकी मंत्री रहा। उसने एक योग्य व्यक्ति को भारतीय धर्मों और भारतीय चिकित्साशास्त्र का अध्ययन और अन्वेषण करने के लिये भारत भेजा। इस व्यक्ति जिससे कुछ अवतरण हिंदू युनिवार्सटी मैगेजीन भाग २६, ने०.३, पृ. २३. में और उसके आगे के पृष्ठों में छपे थे। (१) अवारिफल मारिफ़ (अँगरेजी अनुवाद ), पृ. ।। (२) नदवी-अरब और भारत के संबंध, पृ. ६४ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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