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हुमायूँ के विरुद्ध षड्यंत्र
२५३ (ग) हिंदुस्तान में साम्राज्य स्थापित करने का विचार तो बाबर का प्रारंभ से ही था। फिर भी मिसेज बिवरिज का यही कथन है-"उसकी इच्छा काबुल को अपना केंद्र बनाने की थी दिल्ली को नहीं, जिससे यदि वह हिंदुस्तान खो भी बैठता तो सिंध नदी के पश्चिम का भाग और कंदहार तो उसके पास रहता' ।” परंतु इस कथन में भी अधिक तथ्य नहीं जान पड़ता, क्योंकि प्रथम तो यह कि सिंध के पश्चिम का भाग बाबर के पास था ही क्या, और जो था भी वह इतना प्रस्थायी था कि न जाने कब हाथ से निकल जाय । उसका मध्य एशिया का जीवन ही इस बात का साक्षी है। दूसरे, जैसा लेनपूल महाशय ने कहा है, पाँच साल तक वह हिंदुस्तान में रहा और उसने उसे अपना बना लिया था। पाठकों को याद होगा कि बाबर ने कनवाहा के युद्ध-स्थल पर क्या कहा था-"ईश्वर की कृपा से हम शत्रुओं पर विजयी हुए जिससे हमें चाहिए कि उनके राज्य पर शासन करें। फिर अब क्या आफत आ पड़ी है, क्या जरूरत उठ खड़ी हुई है कि हम बिना कारण ही काबुल जाकर वहां की गरीबी का शिकार बनें ।" यही नहीं, काबुल के तरबूजों के लिये वह भले ही तरसता था परंतु हिंदुस्तान का सिंहासन खोकर काबुल जाना उसके लिये असंभव था। उसने कहा था-"ज्योंही हिंदुस्तान में शांति स्थापित हो जायगी तथा शासन-प्रबंध ठीक चलने लगेगा त्योंही, ईश्वर ने चाहा तो, मेरा प्रस्थान भी हो जायगा ।" इन पाँच
"अपने भाइयों को और बेगमों को दिन में दो बार अपने सामने अवश्य उपस्थित होने की आज्ञा दो। श्राना या न आना उन्हीं की इच्छा पर न छोड़ दो।" तुजुके-बाबरी, पृष्ठ ६२७ ।
(१) तुजुके-बाबरी, जि० ३, पृष्ठ ७०५ । (२) वही, जि. ३, पृष्ठ ५२५ । (३) वही, पृष्ठ ६४६ । (४) वही, पृ० ५३२ । इस प्रकार भारत की शांति इसके लिये अधिक महत्वपूर्ण थी।
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