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हुमायूँ के विरुद्ध षड्यंत्र
२५१ बाबर और षडयंत्र कुछ षड्यंत्र के कल्पनाकार इतिहासज्ञों का यह भी मत है कि बाबर ने भी इस षड्यंत्र में भाग लिया था। मिसेज बिवरिज का कथन है कि भिन्न अवतरणों को एक साथ पढ़ने से एक दूसरी ही धारणा होती है कि मीर खलीफा ही नहीं वरन् कुछ और अमीरों के साथ बाबर भी किसी दूसरे को हिंदुस्तान का सम्राट बनाने की इच्छा करता था। श्रीयुत कालिकारंजनजी कानूनगो का कथन इससे भी अधिक आश्चर्योत्पादक है। उनका अनुमान है कि " बाबर हुमायूँ को देहली के राजसिंहासन पर बैठाने की तैयारियों में इतना तन्मय था कि उसको विद्रोही अफगानों को दबाने का ध्यान ही न रहार ।" परंतु बाबर के समय समय के वक्तव्यों तथा उस समय की कुछ घटनाओं पर एक गवेषणात्मक दृष्टिपात करने से तो यह मत निर्यात कपोन्न-कल्पित ही प्रतीत होता है; क्योंकि
(क ) ६ फरवरी १५२६ को बाबर ने ख्वाजा कला को समस्त रनिवास काबुल से नीलब भेजने की आज्ञा दी थी३ । माहम पहले ही चल चुकी थी। इस प्रकार २६ जून १५२६ तक समस्त राजवंश आगरा में प्रा पहुंचा था। यदि बाबर स्वयं काबुल जाना चाहता था और अपने पुत्र हुमायूँ को हिंदुस्तान का साम्राज्य भी नहीं देना चाहता था, तो प्रश्न यह उठता है कि फिर उसने अपना काबुल एक ही दिन में पाया। (तुजुके-बाबरी और अकबरनामा)। इस प्रकार जब माहम स्वयं हुमायूँ के चल चुकने के १६ दिन बाद इटावा पहुंची तब यह कैसे कहा जा सकता है कि उसने इटावा से काबुल संदेश भेजा था।
(१) तुजुके-बाबरी, अनु० मिसेज ए. एस. बिवरिज, जि. ३, पृष्ट ७०२, टिप्पणी।
(२) शेरशाह-ले. कालिकारंजन कानूनगो, पृष्ठ ६७, टिप्पणो । (३) तुजुके-बाबरी, जि. ३, पृष्ठ ६४७ ।
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