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नागरीप्रचारिणी पत्रिका दोनों बातें भी मान लें कि माहम बाबर के वहाँ से आगरा चले जाने के दूसरे ही दिन ( अर्थात् २३ जून १५२६ ई० को) इटावा आ पहुँची और हुमायूँ भी माता के साथ भेटें देनेवाले दिन के एक दिन पूर्व ही आ पहुँचा था अर्थात् ६ जुलाई : ५२६ को तो. इन दो तारीखों के बीच केवल १३ दिनों का अंतर रहता है। रेनेल के अनुसार आगरा से काबुल ६७६ मील दूर है। यहाँ यह बता देना आवश्यक है कि जून की गरमी थो, मार्ग में बहुत सी पहाड़ी नदियाँ थीं जिनमें पानी भी अधिक होगा और मार्ग न सुरक्षित ही था, न अच्छा ही। ऐसी परिस्थितियों में, केवल १३ दिन के अंदर, माहम का दूत काबुल से आगे बदख्शा (अर्थात् ६७६ मील से अधिक ) गया और हुमायूँ एक दिन में काबुल आया' तथा वहाँ से आगरा (६७६ मील ) आ पहुँचा। इस प्रकार केवल १३ दिन में १६०० मील से अधिक सफर किया गया जे। इन असाधारण परिस्थितियों में कठिन ही नहीं वरन् प्रसंभव मालूम होता है।
(१) मेम्वायर्स डी बाबर, पैवट डी कोर्टीले, पृष्ठ ४५७ ।
हुमायूँ बदख्शा से काबुल १३६ हि० के बैराम के त्यौहार के दिन पहुंचा। ( मेम्वायस डी बाबर, अनु० पी० डी० कोर्टीले )। यह त्योहार १३६ हि. की दो तारीखों को पड़ता है, १ शव्वाल ( ८ जून १५२६ ई.) और १० जिलहिज्जा ( १६ अगस्त १५२६)। १० जिलहिजा (१६ अगस्त) को हुमायूँ का काबुल जाना नहीं कहा जा सकता, क्योंकि हुमायूं इसके पूर्व ही ७ जुलाई १५२६ ई० को आगरा में था। अतः १ शव्वाल अर्थात् ८ जून १५२६ ई. को हुमायूँ काबुल पाया होगा।
(२) प्रो. रश्ब्रुक विलियम्स' का ठीक मत है कि हुमायूँ ८ जून १५२६ ई० को काबुल पहुंचा था। परंतु इससे तो उल्टा यही सिद्ध होता है कि माहम को इटावा में षड़यंत्र का ज्ञान नहीं हुमा था, कारण कि माहम इटावा २३ जून १५२६ को पहुँची अर्थात् हुमायूँ के काबुल पहुंचने के १५ दिन बाद और बदखा छोड़ने के १६ दिन बाद (क्योंकि हुमायूँ बदख्शा से
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