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हुमायूँ के विरुद्ध षड्यंत्र
२४६ (ख) गुलबदन बेगम' ने अपनी पुस्तक में इस घटना का कुछ भी उल्लेख नहीं किया है। क्या षड्यंत्र के विषय में कुछ लिख देने से सम्राट् हुमायूँ की मानहानि हो जाती ? क्या उसे मीर खलीफा या महँदी ख्वाजा का डर था ? उसकी पुस्तक इस घटना के लगभग ६५ वर्ष बाद लिखी जाने के कारण न तो भय होने का प्रश्न उठता है और न मानहानि का हो। माहम गुलबदन को बहुत प्यार करती थी और उसे सब गुप्त बातें भी बता देती थी । यह इस बात का ही द्योतक है कि न तो कोई ऐसी घटना हुई थी और न माहम को उसका कुछ ज्ञान ही था।
(ग) अब रहा यह अनुमान कि माहम को इसकी सूचना इटावे के पास मिली। यह विचार भी बिलकुल निर्मूल है। २२ जून १५२६ को बाबर इटावा में था जहाँ उसका कथन है कि महँदी ख्वाजा ने हम लोगों का स्वागत किया। क्योंकि इस तारीख को बाबर ने माहम के विषय में इटावा में या और कहीं कुछ नहीं लिखा, इससे यह स्पष्ट है कि इस समय तक माहम ( २२ जून १५२६ तक ) इटावा नहीं पहुँच सकी। माहम का स्वागत आगरा में २६ जून १५२६ को बड़े समारोह के साथ किया गया । ७ जुलाई १५२६ को हुमायूँ और माहम ने बाबर को भेटे दो। इससे यह स्पष्ट है कि ७ जुलाई को हुमायूँ आगरा में था अर्थात् संभवतः इसके पूर्व हो आगरा आ पहुंचा था। यदि हम ये
(.) गुलबदन बेगम-सम्राट हुमायू की बहन-भी माहम के साथ ही काबुल से चल दी थी और मार्ग भर उसी के साथ रही।
(२) हुमायूँनामा–ले. गुलबदन बेगम, अनु. मिसेज ए. एस. बिवरिज, पृष्ठ ११६ ।
(३) तुजुके-बाबरी, जि० ३, पृष्ठ ६८६ । (४) वही, " " । (५) वही, " "६८७ ।
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