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नागरीप्रचारिणी पत्रिका कथनों का थोड़ा और विश्लेषण करेंगे कि क्या हुमायूँ की माता माहम को इस षड्यंत्र का ज्ञान था तथा क्या बाबर भी अपने पुत्र के विरुद्ध षड्यंत्र में भाग लेने का दोषी था ?
माहम और षड्यंत्र षड्यंत्र मत को माननेवाले कुछ यूरोपीय विद्वानों का यह कहना है कि षड्यंत्र की सूचना पाकर माहम ने आगरा को प्रस्थान किया और हिंदुस्तान आकर उसने हुमायूँ को भी चल पड़ने का आदेश भेजा। ओजस्वी इतिहास-वेत्ता प्रो. रश्वक विलियम्स ने कुछ "अच्छे कयासी प्रमाणों" के आधार पर दो बातें कही हैंएक तो यह कि माहम ने ही हुमायूँ को पाने का आदेश भेजा। दूसरे, संभवत: माहम को इस षड्यंत्र का ज्ञान इटावा होकर
आगरा जाते समयहु आ " मिस्टर अरस्किन तथा मिसेज बिवरिज ने भी इस मत के प्रथम भाग का समर्थन किया है । परंतु निम्नलिखित प्रमाणों के आधार पर हमारी धारणा है कि माहम को इस काल्पनिक षड्यंत्र का बिल्कुल ज्ञान न था।
(क) माहम, निश्चितता के साथ पांच महीने चार दिन में आगरा पहुँची। यदि उसे षड्यंत्र का खटका था तो उसका कर्त्तव्य था कि वह आगरा शीघ्र पहुँचकर स्वय' देखती कि क्या परिस्थिति है और क्या करना कल्याणकारी तथा हितकर होगा, न कि धीरे धीरे आनंद से प्रकृति-निरीक्षण करते हुए प्राना। इससे तो षड्यंत्र का ज्ञान न होना ही प्रतीत होता है ।
(१) ऐन एंपायर बिल्डर श्राफ दि सिक्स्टींथ सेंचुरी, पृष्ठ १७२ और १७२ की टिप्पणी ।
(२) बाबर और हुमायू-ले० अरस्किन, जि. २, पृष्ठ ५१२ ।
(३) माहम २१ जनवरी १५२६ ई. को काबुल से चली और २६ जूम १५२६ को आगरा पहुची।-तुजुके-बाबरी, जि. ३, पृष्ठ ६८०।
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