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हुमायूं के विरुद्ध षड्यंत्र हुमायूँ एक दिन में काबुल आ पहुँचा' और वहाँ अकस्मात् ही उसकी और भाइयों से भेंट हो गई। इतिहास-विशेषज्ञ प्रो० रश्ब्रुक विलियम्स का कथन है-"तीनों भाइयों ने षड्यंत्र के प्रश्न पर परामर्श किया। उन्होंने देखा कि उनका कल्याण हुमायूँ तथा उसकी माता के इस षड्यंत्र को विध्वंस करने की योग्यता पर ही निर्भर है२ " मिस्टर अरस्किन का भी यही मत है। परंतु इसे मानने में दो कठिनाइयाँ हैं-एक तो यह कि कामरों की राजा होने की प्रबल अभिलाषा थी। हुमायूँ से उसकी बड़ी ईर्ष्या थी। अपनी जागीर हुमायूँ से कम होने के कारण, बाबर के जीवन में ही उसने घोर असंतोष प्रकट किया था और बाबर ने भी हुमायूँ को लिखा था-'मेरा नियम यही रहा है कि जब तुम्हें ६ भाग मिलें तो कामरों को पाँच। इस नियम में परिवर्तन न होना चाहिए।" भला कामराँ जैसा लोलुप, ईर्ष्यालु तथा हासलामंद युवक ऐसा अवसर पाकर कब चूकनेवाला था। यदि हुमायूँ उसे अपने जाने का अभिप्राय बता देता तो कदाचित् कामरों ही पहले आगरा में दिखाई देता। दूसरे यह कि हुमायूँ के भाइयों में वह सहानुभूति तथा सहयोग छू भी नहीं गया था जो उन्हें कल्याण-मार्ग की ओर ले जाता और हुमायूँ तथा उसकी माता को षड्यंत्र का विध्वंस करने देता।
इस प्रकार न कोई षड्यंत्र था, न हुमायूँ तथा उसके भाइयों में इसकी कोई बात ही हुई। अब हम इतिहासज्ञों के इन दो
(१) मेम्वायर्स डी बाबर, पृष्ठ ४५७; अकबरनामा, पृष्ठ २७१ ।
(२) ऐन एंपायर बिल्डर आफ दि सिक्स्टींथ सेंचुरी-ले. एल. एफ० रश्वक विलियम्स, पृष्ठ १७३ ।।
(३) तुजुके-बाबरी, जि. ३, पृष्ठ ६२६ । (४) वही, जि. ३, ६२५ ।
(५) कामरों ने जाने का कारण पूछा तो हुमायूँ ने पिता के दर्शन करने का बहाना ही कर दिया ।-अकबरनामा, जि. १, पृष्ठ २७२ ।
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