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नागरीप्रचारिणी पत्रिका षड्यंत्र की कल्पना होने लगी। बेचारा मीर खलीफा दोषी ठहराया जाने लगा। इस तृणावर्तीय विडंबना को शांत करने के लिये उसने हुमायूँ को ही, कदाचित् बाबर को बतलाए बिना, बुला भेजा। बाबर अब उत्तर-पश्चिम की ओर जानेवाला था और हुमायूँ का शीघ्र राजधानी आ पहुँचना भी परमावश्यक था, अत: उसने कुछ दिनों के लिये बदख्शा को किसी के अधीनस्थ कर चले आने का संदेश भेजा होगा। अफगान-विद्रोह तथा बाबर की बीमारी के कारण जाना स्थगित कर दिया गया। उधर हुमायूँ पहले से ही बेचैन था। पिता के आने के विचार की सूचना उसे मिल चुकी थी३ । टोकाकारों के दृष्टि-कोण बहुधा भिन्न भिन्न होते हैं। सम्राट् के भावी आगमन की सूचना पाकर, उजबेगों के अत्याचार से मुक्त हो जाने की आशा से, बदख्शाँनिवासी तो आनंद मनाने लगे; परंतु हुमायूँ को तो इसमें हलाहल ही दिखाई पड़ता था। उसके तथा प्रधान मंत्री के बीच मनमुटाव था। हिंदुस्तान में, उसके पिता की अनुपस्थिति में, न जाने मीर खलीफा क्या कर बैठे। वह इन्हीं भावनाओं से संभवतः व्यग्र हो रहा था कि उसे मीर खलीफा का ही निमंत्रण मिला। वह और भी अधिक बेचैन होकर आगरा की ओर चल पड़ा।
अब हम उक्त लेखकों के कुछ और मतों की व्याख्या करेंगे।
(१) यद्यपि तबकाते-अकबरी के लेखक का पिता ख्वाजा मुकीम हरवी मीर खलीफा का मित्र था परंतु यह मंत्रणा गुप्त होने के कारण कदाचित् यह भेद मीर खलीफा उसे नहीं बता सका। वास्तविक रहस्य से अनभिज्ञ, ख्वाजा मुकीम ने भी षड्यंत्र की कल्पना को ही ठीक समझा और मीर खलीफा को महदी ख्वाजा का कपट-भाव बतलाते हुए उसे षड्यंत्र पर धिक्कारने लगा। . (२) तबकाते-अकबरी, एलियट, जि० १, पृष्ठ १८७ । (३) तुजुके बाबरी, जि. ३, पृष्ठ ५३२ । (४) तारीखे-रशीदो।
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