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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
बुलाना अनावश्यक समझा; फिर बाबर का जाना भी अभी पूर्ण रूप से निश्चित न था ।
(ख) हिंदुस्तान में हुमायूँ के आ जाने के बाद भी बाबर मीर खलीफा का पहले ही की तरह सम्मान' करता रहा । यह कहना तो न्याय संगत न होगा कि इतना हो जाने पर भी उसको इस रहस्य का पता न चल पाया हो, जब कि तबकाते-अकबरी के अनुसार सर्व साधारण तक को इसका पता लग गया था । अपने पुत्र के विरुद्ध षड्यंत्र का पता पाकर प्रधान षड्यंत्रकारी मीर खलीफा तथा महँदी ख्वाजा को बाबर अवश्य दंड देता । परंतु दंड देने के स्थान में महँदी ख्वाजा के विद्राही पुत्र को प्रभयदान मिला३ । इससे यही स्पष्ट है कि कोई षड्यंत्र न था ।
( ग ) मीर खलीफा ने, महँदी ख्वाजा के कपट-भाव का पता पाकर, किसी दूसरे व्यक्ति को सिहासनस्थ होने का सौभाग्य प्रदान क्यों नहीं किया ? यदि योग्य व्यक्ति की आवश्यकता थी तो मोहम्मद जमाँ मिरजा' निकट ही था, और 'ऐरे गैरे पचकल्यानी' तो कहीं भी मिल सकते थे । परंतु इसके विपरीत उसने
(१) तुजुकेनबरी, जि० ३, पृष्ठ ६८६ । (२) तबकाते-अकबरी, पृष्ठ २८ ।
(३) तुजुके- बाबरी, जि० ३, पृष्ठ ६६० ।
(४) मोहम्मद जर्मा मिरजा मध्य एशिया के बाएखरा ऐसे प्रसिद्ध घराने का था । वीर तथा साहसी होने के अतिरिक्त वह सम्राट् बाबर का सगा दामाद था । अतः सम्राट् तथा राज - कर्मचारियों की दृष्टि में महँदी ख्वाजा से मोहम्मद जर्मा का कहीं ऊँचा स्थान होगा । इसके अतिरिक्त मोहम्मद जर्मा, हुमायूँ के उत्तराधिकारी होने पर, राज्य पाने के लिये विद्रोही भी हो गया था । यदि इस समय राजसि हासन संबंधी समस्या उठी होती तो प्रथम तो बाबर के पुत्रों के बाद उसके उत्तराधिकारी होने के प्रश्न पर अवश्य विचार किया गया होता और दूसरे कदाचित मोहम्मद जम मिरजा ऐसा अवसर पाकर न चूकता । परंतु कोई इतिहासकार इस काल्पनिक घटना के
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