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हुमायूँ के विरुद्ध षड्यंत्र
२४३ इसमें बाबर का भी हाथ था और माहम ( हुमायूँ की माता ) ने इसी कारण आगरा की ओर पयान किया। हमें तो यह सब मत कपोल-कल्पित से प्रतीत होते हैं, न कोई षड्यंत्र था, न षड्यंत्रकारी । सच बात तो यह थी कि बाबर बहुत दिनों से उत्तर-पश्चिम प्रदेश को, शांति स्थापित करने के प्रयोजन से, जाना चाहता था जैसा प्रयाग-विश्वविद्यालय के इतिहास-विभाग के एक मौलिक तथा ओजस्वी इतिहासवेत्ता का कथन है, बाबर की इस अनुपस्थिति में यह उचित था कि आगरा के प्रबंध का भार किसी निकटस्थ सूबेदार को दे दिया जाय । जौनपुर का अध्यक्ष मोहम्मद जाँ मिरजा यह भार लेने में सर्वथा असमर्थ था, क्योंकि बंगाल-प्रांतीय अफगान सदा ही विद्रोही रहते थे। उनकी ओर से मुगल साम्राज्य को बड़ा भय था और उनके विरुद्ध मोहम्मद जमां जैसे योग्य पुरुष की आवश्यकता थी। अत: बाबर ने मीर खलीफा की सम्मति से कुछ समय के लिये आगरा को महँदी ख्वाजा के सूबे में मिला देने का विचार किया। इस बात को ध्यान में रखते हुए यदि हम तबकाते-अकबरी का अध्ययन करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी षड्यंत्र की रचना नहीं की गई थी। इसके प्रमाण निम्नलिखित हैं
(क ) यदि पारस्परिक द्वेष के ही कारण हुमायूँ को सम्राट होने से वंचित रखा जा रहा था तो बेचारे कामरान, अस्करी और हिंदाल ने क्या बिगाड़ा था ? उनसे तो मीर खलीफा को कोई खटका न था; फिर उन पर यह वज्रपात कैसा कि मीर खलीफा उन्हें भी सिंहासन नहीं देना चाहता था! स्पष्ट बात तो यह मालूम होती है कि बाबर की अनुपस्थिति में थोड़े दिनों के लिये आगरा का प्रबंध करने के लिये बाबर और मीर खलीफा ने राजकुमारों को
(१) तुजके-बाबरी, जि० ३, पृष्ठ ६७६ ।
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