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हुमायूँ के विरुद्ध षड्यंत्र
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पाकर......
. वह सौभाग्य के काबा तथा आशाओं के किब्ला की ओर चल पड़ा' ।” यह मत भी हमें ठीक नहीं मालूम होता क्योंकि इस समय हुमायूँ बालक तो था नहीं जो बिना माता-पिता के कहीं रह न पाता फिर गत फरवरी तक समस्त रनिवास काबुल में ही था तथा बाबर सदा उपदेशयुक्त पत्र उसे भेजता रहता था और हुमायूँ तो आलस्य में कभी कभी उसे उत्तर तक नहीं देता था ? जिसके लिये उसे अपने पिता की झिड़को भी सहनी पड़ती थी ।
दूसरे हुमायूँ की मानसिक प्रगति कुछ सूफी मत की ओर थी जिस कारण वह कुछ विरक्त तथा एकांतवास प्रेमी भी हो गया था । कभी कभी तो अमीरों को दिन भर उसके दर्शन दुर्लभ हो जाते थे रे । यही नहीं, एक बार तो बाबर का राजदूत साल भर तक बदख्शाँ में पड़ा रहा । एक ऐसी प्रकृति का पुरुष अपने पिता के प्रेम से पागल होकर कैसे भाग खड़ा हुआ, यह तो हमें अविश्वसनीय ही प्रतीत होता है । परंतु यदि थोड़ी देर के लिये ऐसा ही मान लिया जाय तो प्रश्न यह उठता है कि पिता के दर्शन करने के बाद उसने अपने उसी श्रेयस्कर पिता के बदख्याँ लौट जाने के आदेश का उल्लंघन ही क्यों किया ? अवश्य ही इसका कारण कोई दूसरा होगा ।
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( १ ) अकबर - नामा - ले० बि० १, पृष्ठ २७१ ।
(२) तुजुके- बाबरी - ले० ज० मो० बाबर, अनु० मिसेज ए० एस० बिवरिज, जि० ३, पृष्ठ ६२७ ।
( ३ ) वही, जि० ३, पृष्ठ ६२६ ।
( ४ ) वही, जि० ३, पृष्ठ ६२६ ।
उसी पत्र में बाबर ने यह भी लिखा - "फिर एकांतवास के विषय में तुमने बहुत बार लिखा है— एकांतवास शासकों के लिये बड़ा दोष है । शासन के साथ एकांतवास शोभा नहीं देता" ।
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अबुल फजल, अनु० ए० एस० बिवरिज,
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