SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पद्माकर के काव्य की कुछ विशेषताएँ २३५ Of full exerted Heaven, they wing their course And dart on distant coasts, if some sharp rock. Or shoal fragments fling their floating round टामसन के काव्य में प्रकृति के रौद्र रूप का दर्शन मिलता है। वह संहारकारिणी बनकर ही उपस्थित हुई है। नीचे पर्वताकार लहरों का हुंकार और आंदोलन, ऊपर विद्युत् का बन-निर्घोषस्थानच्युत जल-पोत की शक्तिः कितनी जो इस प्रलयकारी परिस्थिति का सामना कर सके। वह तो लहरों के वशीभूत होकर उन्हीं की कृपा पर टिका हुआ है-अभी अभी है, अभी नहीं । भविष्य अंधकारमय और निराशा-पूर्ण है। किंतु पद्माकर की भीर भरी झाँझरी यद्यपि प्रलय-पयोनिधि सदृश लहरों में ही पड़ी हुई है और खेवैया का धैर्य छूट गया है परंतु रघुरैया की शक्ति पर पूर्ण विश्वास है, वह पार लगकर ही रहेगी। भयानक, स्थिति के Background और उज्ज्वल आशा के प्रकाश में भक्त-हृदय का विश्वास एकदम खिल गया है। पद्माकर को सबसे कम सफलता मिली है वीर अथवा रौद्र भावापन्न काव्यों में । वीर-गाथा काल की शैली के अनुकरण में तो वे सर्वथा विफल हुए हैं। हाँ, भूषण की शैली के अनुगमन में उन्हें अपेक्षाकृत अवश्य अधिक सफलता मिली है। उनकी भृषणशैली की तलवार-प्रशंसा यहाँ पर दी जाती है। दाहन ते दूनी तेज तिगुनी त्रिसूल हू ते, चिल्लिन ते चौगुनी चलाक चक्रचाली ते । कहै 'पदमाकर' महीप रघुनाथराव ऐसी समसेर सेर सत्रुन पै घाली ते ॥ . पाचगुनी पब्ब ते पचीस गुनी पावक ते प्रगट पचासगुनी प्रलय प्रनाली ते । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy