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पद्माकर के काव्य की कुछ विशेषताएँ
निशि अँधियारी साई मतवारो जाके कर पतवार । काम क्रोध मद मोह घोर बहु मच्छ मगर घरियार ॥ सिंधु- सुता जग-मातु बिना अब कोउ न बचावनहार |
नैया मेरी तनक सी चहुँ दिशि प्रति भरें उठत केवट है मतवार नाव अधी उठत उदंड ताहु पै
कह गिरिधर कविराय नाथ है। उठे दया को डाँड़ घाट पै
बोझी
- काशीप्रसाद |
पाथर भार ।
केवट है मतवार ॥
मझधारै श्रानी ।
बरसै पानी ॥
तुम्हीं खेवैया ।
श्रावै नैया ॥
— गिरिधर ।
अब शिव पार करो मेरी नैया । औघट घाट महाजल बूड़त, बल्ली ठगै न खिवैया | बारि बरोबर बारि रहयौ है तापर अति पुरवैया || थरथरात कंपत हिय मेरो शिव की देत दुहैया | देवीसहाय प्रभात पुकारत शिव पितु गिरिजा मैया ॥ -दे वीसहाय ।
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डगमग डोलै दीनानाथ नैया भवसागर में मेरी । मैंने भर भर जीवन भार, छोड़े तन बोहित बहु बार । पहुँचा एक नहीं उस पार, यह भी कालचक्र ने घेरी ॥ मुड़का मेरु दंड पतवार, कर पग पाते चले न चार । सकुचा मन माझी हिय हार, पूरी दुर्गति रात अँधेरी ॥ ऊँले श्रघ मष नक्र भुजंग, फटके पटके ताप तरंग | तरती कर्म पवन के संग, भँवर में भरती है चकफेरी ॥ ठोकर मरणाचल की खाय, फटकर डूब जायगी हाय ।
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