SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नागरीप्रचारिणी पत्रिका व्याधहू 1 बिद साधु । अजामिल ते, ग्राह ते गुनाही कह। तिनमें गिनाओगे स्यौरी हौं न सूद्र हैं। न केवट कहूँ को त्यों न, गौतमीतिया हैं। जापै पग धरि श्राश्रोगे ॥ राम सों कहत 'पदमाकर' पुकारि तुम, मेरे महापापन को पारहू न पाओगे । सीतासी सती को ज्यो झूठोई कलंक सुनि, L साचो हूँ कलंकी ताहि कैसे अपनाओगे ? अपने को पापी से भी पापी बताकर उद्धार की प्रार्थना प्राय: सभी भक्तों ने की है । परंतु अपने इष्टदेव राम के सोता-त्याग पर जैसी मीठो चुटकी पद्माकर ने ली है वैसो आज तक किसी के काव्य में देखने को न मिली । व्यंग चाहे जैसा भी उन्होंने क्यों न किया हो पर अपने इष्टदेव की उदारता में उन्हें पूर्ण विश्वास था । प्र के पयोनिधि लौं लहरें उठन लागीं, लहरा लग्यो त्यों होन पौन पुरवैया को । भीर भरी झाँझरी विलोकि मँझधार परी, धीर न धरात 'पदमाकर' खेवैया को ॥ कहा वार कहा पार जानी न जात कछू, दूसरा दिखात न रखैया और नैया को । बहन न पैसे घेरि घाटहि लगे है ऐसे, श्रमित भरोसा मोहि मेरे रघुरैया को ॥ २३२ तूफान में पड़ी नाव के डूबने-उतराने के इस रूपक को अनेक भक्त कवियों ने अपने काव्य में चित्रित किया है जिनमें से चार यहाँ पर दिए जाते हैं । पार कैसे को जैहै री नदिया श्रगम अपार । गहिरी नदिया नाव पुरानी खेवनहार गँवार || Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy