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पद्माकर के काव्य को कुछ विशेषताएँ २२६ अवगाहन कर अंतर्देवता का प्राण शीतल और अनंत आनंद में निमग्न हो जाता है। यही समाधि है, यहो ब्रह्मानंद है। उपयुक्त छंद में पद्माकर ने राधा की इसी अवस्था का वर्णन किया है। वर्णन में जैसी उनकी तल्लीनता दिखाई गई है, परमात्मा करे वह प्रत्येक विरही प्राणी को प्राप्त हो । ___ पद्माकर के इस भाव-चित्र से अनेक कवियों की कल्पना का सादृश्य पाया जाता है
जो न जी में प्रेम तब कीजै ब्रत-नेम,
जब कंजमुख भूलै तब संजम विसेखिए । प्रास नहीं पी की तब श्रासन ही बाधियत,
सासन के सासन को मूंद पति पेखिए । नख ते सिखा ली जब प्रेममई बान मई,
बाहिर लौ भीतर न दूजो देव देखिए । जोग करि मिलै जो वियोग होय पालम जू ,
या न हरि होय तब ध्यान धरि देखिए ॥-देव निसि-दिन सोनन पियूष सो पियत रहै,
छाय रह्यो नाद बाँसुरी के सुर-ग्राम को। तरवितनूजा तीर बन-कुज बीधिन मैं,
जहाँ तहाँ देखियत रूप छवि-धाम कौ ॥ कवि मतिराम होत ही तो ना हिये ते नेक,
सुख प्रेम गात को परस अभिराम को। ऊधौ तुम कहत वियोग तजि जोग करो, जोग जब करै जो वियोग होय स्याम को।।
-मतिराम । My beloved is ever in my heart That is why I see him every wbere,
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