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________________ पद्माकर के काव्य को कुछ विशेषताएँ कौपि कदली लैंौं या श्राली की अवलंब कहू, चाहत ब्रह्यौ पै लोकलाजन लहै नहीं । कंत न मिलै को दुख दारुन अनंत पाय, area कहयौ पै कछु काहू से कहै नहीं ॥ एक ओर लोकलना दूसरी ओर विरह वेदना, दोनों के शासन में पड़कर अबला बाला का बुरा हाल है । हृदय रो रहा है पर उसे प्रकट करने में लज्जा बाधक है । संभवतः उसकी उस अंतर्व्यथा से सहानुभूति प्रकट करनेवाला भी कोई नहीं है । वह अपने आँसुओ का घूँट आप ही पोकर रह जाती है, कितनी दयनीय अवस्था है "इक मीन बिचारो बिध्या बनली पुनि जाल के जाय दुभाले परथो । मन तो मनमोहन के सँग गो तन लाज मनोज के पाले परयो || ऐसे कुसमय में टेनिसन की मेरीना के समान उसका यह सोचना ही स्वाभाविक होगा ..... My life is dreary He cometh not...... २२७ I am aweary aweary I would that I were dead. ..... तोष तथा बिहारी ने भी अपने मुक्तकों में कुछ ऐसी ही अवस्था का वर्णन किया है । प्रीतम को हित पोन गहि, लिए जाति तेहि संग । गहि डोरी कुल-लाज की, भई चंग के रंग ॥ तोषविधि | Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat नई लगन कुल की सकुच बिकल भई अकुलाय | दुहूँ और ऐंची फिरे फिरकी लौं दिन जाय ॥ - बिहारी । www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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