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पद्माकर के काव्य को कुछ विशेषताएँ
Romeo—
See how she leans her cheek upon her hand O! that I were a glove upon that hand That I might touch that cheek.
हुआ है ।
Shakespeare रोमियो कहता है- देखो, वह अपने करतल पर कपोलों को किस प्रकार रखे है । आह ! यदि मैं उस हाथ का 'ग्लव' ही होता तो कम से कम उसके गाल का सुख -स्पर्श तो पाता ।
पद्माकर तथा शेक्सपियर दोनों ही ने अपनी अपनी नायिकाओं की एक ही स्थिति का वर्णन किया है । अंतर इतना ही है कि शेक्सपियर ने कविता में जुलियट के सौंदर्य को रोमियो की आंतरिक अभिलाषा को व्यक्त कराकर विकसित किया है और पद्माकर ने प्रकृति के विरोधी तत्वों का उल्लेख कर उसकी विपरीत स्थिति का परिचय दिया है । यदि शेक्सपियर की सफलता सरलता के साथ मानी जायगी तो पद्माकर की सफलता अलंकारिकता के साथ हुई है ।
थाई तजि हैं। तो ताहि
तरनितनूजा-तीर,
ताकि ताकि तारापति तरकति ताती सी । कहै 'पदमाकर' घरीक ही मैं घनस्याम,
काम तौ कालबाज कुंजन है काती सी ॥ याही छिन वाही सेो न मोहन मिलोगे जो पै,
लगन लगाइ एती अगिन श्रवाती सी । रावरी दुहाई तौ बुझाई न बुफैगी फेरि,
नेह-भरी नागरी की देह दिया-बाती सी ॥ पद्माकर का यह विरह-वर्णन काव्य- कला की दृष्टि से नेह शब्द श्लिष्ट और चमत्कारपूर्ण है ।
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अच्छा श्लेष द्वारा
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