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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
आर्य - साहित्यकारों ने दोनों अवस्थाओं
किया है ।
का समान
वर्णन
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वियोग का क्लेश कितना तीव्र होता है, इसका वास्तविक अनुभव तो भुक्तभोगी को ही हो सकता है; पर जो भुक्तभोगी नहीं हैं उनके निकट शब्दों द्वारा उसकी तीव्रता का अनुभव कराना बड़ा कठिन है । इसी से कवि प्रायः वियोग-वर्णन में प्रतिशयोक्ति से काम लेते हैं
।
पर कुछ कवियों का यह अतिशयोक्ति
प्रयोग इतना अतिरंजित हुआ है कि वह श्रृंगार अथवा करुण
भाव का उद्रेक करने के स्थान पर आश्चर्य का ही उद्दीपक बन गया है । पद्माकर का विरह-वर्णन भी इस दोष से मुक्त नहीं है, किंतु वह अधिकतर स्वभाव-सम्मत है -
कोमल कंज मृनाल पर किए कलानिधि वास । कबका ध्यान रही जु धरि, पिया मिलन की श्रास ॥
पति-प्रतीक्षारता चिंता मग्ना रमणी का यह एक उत्कृष्ट चित्र है । शब्द-योजना एवं भाव सभी काव्यमय हैं । जिस नारीमूर्ति के निर्माण में जगन्नियंता ने अपनी संपूर्ण निपुणता व्यय कर दी उसकी नियति की कुटिलता सर्वथा प्रतिकूल स्थिति की द्योतक है । इसी से कवि ने भी उसके चित्रांकण में प्रतिकूल तत्त्वों का ही अवलंबन किया है पृथ्वी पर कंज के आधार से बाहु- मृणाल का स्थित होना और फिर उस पर सहज - विरोधी अंतरिक्षवासी कलानिधि - आनन का वास एकदम अनहोनी घटना है। किंतु नायिका के प्रदृष्ट के समान उसका होना सर्वथा संभव है । ऐसे उत्कृष्ट काव्य-चित्र साहित्य में बहुत कम देखे जाते हैं । इस दोहे के साथ जूलियट का निम्न चित्र भी मिलान करने योग्य है ।
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