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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
चढ़ाय घनसार सेत
अंगन में चंदन सारी छीर फेन कैसी श्राभा उफनाति है । राजत रुचिर रुचि मोतिन के श्राभरन
कुसुम कलित केस सोभा सरसाति है ॥ कवि मतिराम प्रान-प्यारे को मिलन चली करिकै मनोरथनि मृदु मुसकात है । होति न लखाई निसि चंद की उज्यारी मुखचंद की उज्दारी तन -छा हैं। छिपि जाति है ॥ — मतिराम |
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दास, मतिराम तथा पद्माकर तीनों ने अभिसारिकाओं का वर्णन किया है। शुकाभिसारिकाओं की वेश-भूषा इस प्रकार की होती है कि वह ज्योत्स्ना में छिप जाय । इसके लिये नाना प्रकार के कृत्रिम उपादानों की सहायता ली जाती है । तदनुकूल दास एवं मतिराम दोनों कवियों ने अपनी अपनी नायिकार्यों को सज्जित करने की चेष्टा की है । दास के उपादान कुछ स्वभाव- विपरीत हो गए हैं । किंशुक वसंत में फूलता है; फिर कार्तिक मास की शरद् निशा में उसका उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है ? यद्यपि पद्मिनी नायिका के पीछे भ्रमरों का उड़ना उपयुक्त है पर रात्रि में उनका उड़ना काल विरुद्ध दूषण है । यद्यपि कुछ काव्यों में रात्रि के समय उनका वर्णन पाया जाता है, किंतु हमारे विचार से ऐसा उचित नहीं है । साथ ही नायिका के साथ भ्रमरों के उड़ने से उसका अभिसार भी दूषित हो जाता है - वह अपने को छिपाने में असमर्थ हो जाती है । ऐसी अवस्था में या तो भ्रमरों का उल्लेख ही न होना चाहिए अथवा ऐसे उपचारों का उपयोग होना चाहिए कि भ्रमर भी साथ में न रहें और पद्मिनी नायिका की अभिव्यक्ति भी स्पष्टतया हो जाय ।
मतिराम का
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