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नागरीप्रचारिणी पत्रिका द्युति का वर्णन इससे अच्छा और क्या हो सकता है ! कितु हमें नम्रता के साथ कहना पड़ेगा कि पद्माकर का छंद विस्तार-लघुता के विचार से कहीं उत्तम बन पड़ा है।
हिंदी के दो-चार अन्य कवियों की सौंदर्य-प्रभा का वर्णन भी मिलान करने योग्य है
प्यारी खंड तीसरे रसीली रंग रावटी में
तक ताकी ओर छकि रह्यौ नंदनंद है। 'कालिदास' बीथिन दरीचिन ह छलकत
__ छबि को मरीचिन की झलक श्रमंद है। लोग देखि भरमै कहा धैौ है या घर में
सुरंगमग्यो जगमगी ज्योतिन को कद है। लालन को जाल है कि ज्वालनि की माल है कि चामीकर चपला है कि रवि है कि चंद है ॥
-कालिदास त्रिवेदी चंद की कला सी चपला सी तिय 'सेनापति',
बालम के जर बीच आनंद को बोति है। जाके आगे कंचन में रंचक न पैए दुति,
माना मन मोती लाल माल आगे पोति है ॥ देखि प्रीति गाढ़ी अोढ़े तनसुख साढ़ि ज्योति
जोबन की बाढ़ी छिन छिन और होति है। झलकत गोरी देह बसन झीने में माना फानुस के अंदर दिपति दीप-ज्योति है ।।
-सेनापति कालिदास अपनी नायिका की देह-दीप्ति का कोई निश्चय नहीं कर पाते। उनकी आँखें उसे देखकर ऐसी चौधिया गई हैं कि आप ही आप उनके मुख से निकल पड़ता है
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