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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
किंतु इन कवि-पुंगवों के कटि-वर्णनों के साथ पद्माकर की लुटी हुई सी कटि भी कम महत्त्व नहीं रखती । कटि का एकांत अभाव मानना युक्तिसंगत नहीं; कम से कम बिहारी के विचारानुसार उसे ब्रह्मवत् तो मानना ही चाहिए। साधारण कामिनी की कटि के वर्णन के लिये पद्माकर को दार्शनिक तत्त्वों के उल्लेख की कोई आवश्यकता नहीं प्रतीत हुई; फिर परब्रह्म से उसकी समता करना तो उनकी दृष्टि में सर्वथा अनुचित था । किंतु साथ ही कटि की सूक्ष्मता को उससे कम प्रदर्शित करने की उनकी इच्छा नहीं थी, जितना कि उनके पूर्ववर्ती कवियों ने दिखाया है । इसी से 'केहि धौं कटि बीचहिं लूटि लई सी' कहकर एक बार तो उन्होंने असत् के समान उसे लुप्त ही कर दिया; पर यह बहुत उचित न होता, इसी से 'सी' शब्द के द्वारा उन्होंने उसकी सूक्ष्मातिसूक्ष्म - प्रसत् नहीं वरन् असत् के समान स्थिति की रक्षा कर ली है । इस सवैए की अंतिम पंक्ति का प्राण इसी 'सी' शब्द में निहित है । पद्माकर के वर्णन में नायिका का रोम रोम माना उछल रहा है । एक दोहे में नायिका की देह- दीप्ति का अच्छा वर्णन हुआ है
इस
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जुवति जुन्हाई सों न कछु और भेद अवरेखि : तिय श्रागम पिय जानिगो चटक चांदनी पेखि ॥
अर्थात युवती और ज्योत्स्ना में कोई भेद न था । ज्योत्स्ना में साधारण से अधिक ज्योति देखकर प्रियतम को उसके आगमन का अनुमान हुआ। साधारण प्रकाश में किसी विशेष प्रकार के प्रकाश के मिलने से वह स्वभावत: अधिक तीव्र हो जाता है। शेक्सपियर ने भी जुलियट की देह - दीप्ति के संबंध में लिखा है
“Oh, she doth teach the torches to burn bright. Her beauty hangs upon the cheek of night
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