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पद्माकर के काव्य की कुछ विशेषताएँ
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कटि की सूक्ष्मता का वर्णन करने में कवियों ने अपना खूब कौशल प्रदर्शित किया है । किसी ने उसे सिंहकटिवत्, किसी ने मुँदरी के तुल्य, किसी ने सिवार के समान, किसी ने मृणाल के तार सदृश तथा किसी ने बाल से भी बारीक बताया है; किंतु बिहारी ने 'सूम कटि परब्रह्म लौं अलख लखी नहि जाय' कहकर सभी कवियों के मुँह में ताला लगा दिया है । सूक्ष्मता का वर्णन • इससे अधिक और कोई क्या कर सकता है ! शंकर कवि ने बिहारी के संकेत की दार्शनिक व्याख्या कर दी है
पास के गए पै एक बूँद हूँ न हाथ लगे
दूर से दिखात मृग-तृष्णिका में पानी है । 'शंकर' प्रमाण सिद्ध रंग को न संग पर
जान पडे अंबर में नीलिमा समानी है ॥ भाव में अभाव है प्रभाव में धौं भाव भरथो,
कौन कहे ठीक बात काहू ने न जानी है । जैसे इन दोउन में दुबिधा न दूर होत तैसे तेरी कमर की अकथ कहानी है ॥
एक उर्दू कवि जैसे कमर की भूलभुलैया में पड़ गया है । वह पूछता है
एक दिया है
सनम सुनते हैं तेरे भी कहीं है, किस तरफ को है
संस्कृत-कवि ने तो उसे एकदम असत् प्रमाणित कर
अनल्पैर्वादीन्द्रैरगणित-महायुक्त-निव है
कमर है ।
किधर है ॥
निरस्ता विस्तार' क्वचिदकलयन्ती तनुमपि ।
असत्ख्याति-व्याख्या धिकचतुरिमख्यातमहिमाsaलग्ने लग्नेय
सुगतमतसिद्धांतसरणिः ॥
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