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________________ पद्माकर के काव्य की कुछ विशेषताएँ २०६ कटि की सूक्ष्मता का वर्णन करने में कवियों ने अपना खूब कौशल प्रदर्शित किया है । किसी ने उसे सिंहकटिवत्, किसी ने मुँदरी के तुल्य, किसी ने सिवार के समान, किसी ने मृणाल के तार सदृश तथा किसी ने बाल से भी बारीक बताया है; किंतु बिहारी ने 'सूम कटि परब्रह्म लौं अलख लखी नहि जाय' कहकर सभी कवियों के मुँह में ताला लगा दिया है । सूक्ष्मता का वर्णन • इससे अधिक और कोई क्या कर सकता है ! शंकर कवि ने बिहारी के संकेत की दार्शनिक व्याख्या कर दी है पास के गए पै एक बूँद हूँ न हाथ लगे दूर से दिखात मृग-तृष्णिका में पानी है । 'शंकर' प्रमाण सिद्ध रंग को न संग पर जान पडे अंबर में नीलिमा समानी है ॥ भाव में अभाव है प्रभाव में धौं भाव भरथो, कौन कहे ठीक बात काहू ने न जानी है । जैसे इन दोउन में दुबिधा न दूर होत तैसे तेरी कमर की अकथ कहानी है ॥ एक उर्दू कवि जैसे कमर की भूलभुलैया में पड़ गया है । वह पूछता है एक दिया है सनम सुनते हैं तेरे भी कहीं है, किस तरफ को है संस्कृत-कवि ने तो उसे एकदम असत् प्रमाणित कर अनल्पैर्वादीन्द्रैरगणित-महायुक्त-निव है कमर है । किधर है ॥ निरस्ता विस्तार' क्वचिदकलयन्ती तनुमपि । असत्ख्याति-व्याख्या धिकचतुरिमख्यातमहिमाsaलग्ने लग्नेय सुगतमतसिद्धांतसरणिः ॥ १४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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