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नागरीप्रचारिणी पत्रिका शैशव पर यौवनराज ने चढ़ाई की। चढ़ाई भी ऐसी वैसी नहीं, एक के बाद दूसरा, दूसरे के बाद तीसरा और तीसरे के बाद चौथा धावा बोला गया और इस प्रकार यौवन की विजय हुई। ऐसे अवसर पर विजयी सेना द्वारा किसी पदार्थ का लुट जाना कोई अस्वाभाविक बात नहीं। बालिका बेचारी की कटि भी लूट सी ली गई।
विद्यापति ने भी वयःसंधि के अवसर पर इसी प्रकार का युद्ध कराया है
सैसव जोबन दरसन भेल । दुहुँ दल बले दंद परि गेल ।
कबहुँ बाँधय कच कबहुँ बिधारि ।
कबहुँ झापय अँग हुकब उघारि ॥ अति थिर नयन अथिर कछु भेल । उरज उदय थन लालिम देल ॥ चंचल चरन चित चंचल भान । जागल मनसिज मुदित नयान ॥
विद्यापति कह सुनु बर कान ।
धैरज धरह मिलायब प्रान ॥ किंतु मम्मट ने अपने काव्य-प्रकाश में शैशव-यौवन का युद्ध न कराकर अंगों का पारस्परिक विनिमय कराया है; पर मूल भाव सभी के मिलते-जुलते हैं।
श्रोणीबन्धस्त्यजति तनुतां सेवते मध्यभागः
पद्भ्यां मुकास्तरलगतयः संश्रिता लोचनाभ्याम् । वक्षः प्राप्तं कुचसचिवतामद्वितीयन्तु वक्त्रं
तद्गात्राणां गुणविनिमयः कल्पितो यौवनेन ॥
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