SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६ नागरी प्रचारिणी पत्रिका परिवर्तन अथवा हत्या से हिंदुओं की इतिश्री ही की जा सकती है । उस समय की यही स्पष्ट आवश्यकता थी कि हिंदू और मुसलमान अड़ोसी पड़ोसी की भाँति प्रेम और शांति से रहें और इन उदारचेताओं को भी इस आवश्यकता का स्पष्ट अनुभव हुआ । दोनों जातियों के दूरदर्शी विरक्त महात्माओं को, जिन्हें जातीय पक्षपात छू नहीं गया था, जिनकी दृष्टि तत्काल के हानि-लाभ सुखदुःख और हर्ष - विषाद के परे जा सकती थी, इस आवश्यकता का सबसे तीव्र अनुभव हुआ । प्रसिद्ध योगिराज गुरु गोरखनाथ' नेजिनका समय दसवीं शताब्दी के लगभग ठहरता है - कुरान में प्रतिपादित बलात्कार का निषेध करनेवाले उस दिव्य सिद्धांत को मुसलमानों के हृदय पर अंकित करने का प्रयत्न किया है, जिसका पीछे उल्लेख किया जा चुका है । एक काजी को संबोधित करके उन्होंने कहा था कि "हे काजी ! तुम व्यर्थ मुहम्मद मुहम्मद न कहा करो । मुहम्मद को समझ सकना बहुत कठिन है, मुहम्मद के हाथ में जो छुरी थी वह लोहे अथवा इस्पात की बनी नहीं थी ।" अर्थात् वे प्रेम अथवा आध्यात्मिक आकर्षण से लोगों को वश में करते थे । हिमालय में प्रचलित मंत्रों में इस बात का उल्लेख है कि महात्मा गोरखनाथ ने हिंदू मुसलमान दोनों को अपना चेला बनाया थारे । बाबा रतन हाजी उनका मुसलमान चेला मालूम पड़ता है, जिसने मुहम्मद नामक किसी मुसलमान बादशाह को ( १ ) गोरखनाथ संबंधी अपने अनुसंधान का मैं एक अलग निबंध में समावेश कर रहा हूँ । (२) मुहम्मद मुहम्मद न कर काजी मुहम्मद का विषम विचारं । मुहम्मद हाथि करद जे होती लोहे गढ़ी न सारं ॥ - " जोगेश्वरी साखी", ८, पौड़ी हस्तलेख । (३) हिंदू मुसलमान बाल गुदाई । दोऊ सहरथ लिये लगाई ॥ 66 - " रखवाली" । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy