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________________ २०४ नागरीप्रचारिणी पत्रिका कुलांगनाओं से भी अधिक सुखी एवं समृद्धिशालिनी एवं देवबालाओं से भी अधिक सुदर तथा सुकुमार हृदयवाली। वे बड़े बड़े राजप्रासादों में रहती हैं, बाग-बगीचों में विहार करती हैं जहाँ विलास की सभी सामग्री प्रस्तुत रहती हैं। उन्हीं के बीच वे हीरे जवाहरात के आभूषणों से सज्जित तथा सुगंध-वासित, अत्यंत बारीक वस्त्र धारण किए-जिसमें से उनके अंग-प्रत्यंग का सौंदर्य परिलक्षित होता है-अपनी प्रेम-क्रीड़ा में मस्त रहती हैं; इहलोक अथवा परलोक से उनका कोई संपर्क नहीं। उनके इन नायक-नायिकाओं के सुख-दुःख की गाथा सुनते सुनते मन मोहित हो जाता हैप्राण तंद्राभिभूत हो जाता है। उनकी कविता के जादू का अवसान होने पर मनुष्य को, अपनी प्रकृतिस्थ अवस्था में आने पर एक मीठी ठेस लगती है तथा कोई बहुत ही अच्छा स्वप्न देखते देखते सहसा नींद टूट जाने पर जैसा अवसाद प्रतीत होता है, और पुन: आँख वंद कर उसी स्वप्न-लोक में विचरण करने की इच्छा होती है, ठीक उसी अवस्था का वह भी अनुभव करता है। जो उनके एक छंद को सुन लेता है वह उनके दूसरे छंद को सुनने का अभिलाषी होता है; जो उनका एक चित्र देख लेता है वह उनके दूसरे चित्र को देखने की इच्छा रखता है। इसी में पद्माकर के काव्य की संपूर्ण सार्थकता है। पद्माकर के काव्य में मतिराम अथवा रसखान की सरलता, विद्यापति अथवा देव की ऐंद्रियता (sensation) तथा जयदेव, दास, अथवा दोष की भावानुभूति (passion) पाई जाती है। नारी-सौंदर्य के अंकन में संसार के प्रायः सभी श्रेष्ठ कवियों ने अपनी प्रतिभा का कौशल दिखलाया है। भारतीय कवियों ने उसके नख-शिख के शृंगार में अपनी जितनी शक्ति व्यय की है, संसार के किसी भी देश में संभवत: उसका दूसरा उदाहरण न मिलेगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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