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________________ १६८ नागरीप्रचारिणी पत्रिका उदाहरण में आनेवाले प्रायः सभी छंदों में मिलेंगे । इस स्थल पर परुषा वृत्ति का एक उदाहरण देना ही उपयुक्त होगा— बारि टारि डारौं कुंभकर्णहि बिदारि डारौं, मारौं मेघनादै श्राजु यों बळ अनंत है । कहै 'पदमाकर' त्रिकूटहू को ढाहि डारौं, डारत करेई जातुधानन को अंत हैं ॥ श्रच्छहि निरच्छिकपि रुच्छ ह्र उचारौं इमि, तोसे तिच्छ तुच्छन को कछुवै न गंत हैं। ! जारि डारौं लंकहि उजारि डारौ उपबन, फारि डारौं रावण की तो मैं हनुमंत हैं। ॥ सरलता और तरलता भी भाषा के अन्यतम गुण हैं । सरलता से सहज बोधगम्य भाषा का तात्पर्य है । सरल भाषा सर्व-साधारण के चित्त को सहज ही आकर्षित कर लेती है । भाषा का लचीलापन ही उसका तारल्य है । जो भाषा लचीली होती है वह कठिन से कठिन भाव को भी सहज ही व्यक्त कर सकती है । पद्माकर की भाषा में हम इन दोनों गुणों का यथेष्ट समावेश पाते I उदाहरण के लिये एक छंद दिया जाता है हैं पाती लिखी सुमुखि सुजान पिय गोबिंद को, श्रीयुत सलोने स्याम सुखनि सने रहौ । कहै 'पदमाकर' तिहारी छेम छिन छिन, चाहियतु प्यारे मन मुदित बने रहो ॥ बिनती इती है के हमेसहूँ हमैं तो बिज, पायन की पूरी परिचारिका गने रहा। याही में मगन मन - मोहन हमारी मन, लगनि मगन बने रहो ॥ लगाय लाल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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