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________________ पद्माकर के काव्य की कुछ विशेषताएँ द्वार में दिसान में दुनी में देस देसन में, देखो दीप दीपन में दीपति दिगंत है । बिपिन में ब्रज में नबेलिन में बेलिन में, १-६७ बनन में बागन में बगरयो बसंत है ॥ पद्माकर के इस अनुप्रास प्रेम की अतिशयता के प्रति लक्ष्य करके कुछ लोग ड्राइडेन (Dryden ) के शब्दों में व्यंग्य करते हैं किOne ( verse ) for sense and one for rhyme Is quite sufficient at a time. 1 एक पंक्ति भाव के लिये तथा एक अनुप्रास के लिये लिखी गई है किंतु षड्ऋतु वर्णन, यशकीर्तन आदि से संबंध रखनेवाले कुछ वर्णनात्मक छंदों को छोड़कर - जहाँ पर उन्होंने जानबूझकर वैसे प्रयोग किए हैं— उनके काव्य में ऐसे स्थल बहुत कम आए हैं जहाँ उनका, अनुप्रासों का, प्रयोग अरुचिकर मात्रा में हुआ हो ! प्रायः देखा गया है कि जहाँ अनुप्रासों के प्रति अत्यधिक अनुराग होता है वहाँ भाव उनके बोझ से दबकर निर्बल हो जाते हैं, किंतु पद्माकर के संबंध में ऐसा नहीं कहा जा सकता । सुंदर भावों के प्रदर्शन के समय उनकी भाषा स्वभावत: सुंदर हुई है । उन्होंने अपनी भाषा को प्रसंग के अनुरूप बनाने की सफल चेष्टा की है। श्रृंगार और भक्ति संबंधी काव्य ही उनका श्रेष्ठ हुआ है और तदनुकूल उपनागरिका तथा कोमला वृत्ति के प्रयोग से वह माधुर्य एवं प्रसाद-गुण से संपन्न हुई है । आज यद्यपि पद्माकर की भाषा का प्रधान गुण नहीं है तथापि भयानक, वीर एवं रौद्र रस के काव्यों में परुषा वृत्ति के प्रयोग द्वारा उन्होंने उसे लाने की चेष्टा की है । उपनागरिका तथा कोमला वृत्ति का उन्होंने जितना स्वाभाविक प्रयोग किया है, परुषा का प्रयोग उनका यद्यपि उतना स्वाभाविक नहीं हुआ है तथापि उन्हें उसमें सर्वथा असफल भी नहीं माना जा सकता । प्रथम दो वृत्तियों के प्रयोग आगे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com ―
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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