________________
१-८२
नागरीप्रचारिणी पत्रिका
ने अपने योगबल द्वारा राजा को सिंहल पहुँचा दिया । "पद्मनीचरित्र" में, इन दोनों का मिश्रण करके, समुद्र-तट तक राजा का स्वयं जाना लिखा है । वहाँ सिंहल पहुँचने में भयानक समुद्र को बीच में देख राजा विचार में पड़ गया । परंतु औघड़नाथ सिद्ध के द्वारा यह संकट शीघ्र दूर हो जाता है । औघड़नाथ, योगबल से, राजा को तुरंत सिंहल पहुँचा देता है ।
( ३ ) सिंहल पहुँचकर रत्नसेन को सिंहल के राजा तक पहुँचने में कुछ विशेष कष्ट नहीं उठाना पड़ा । न तो जायसी के कथनानुसार हीरामन ताते द्वारा पद्मिनी से परिचय की श्रावश्यकता पड़ी और न शिवजी की आज्ञा से सिंहल के राजा ने पद्मिनी के साथ रत्नसेन का विवाह किया । जटमल के कथनानुसार योगी द्वारा राजा के परिचय की भी आवश्यकता नहीं पड़ी। "पद्मनी - चरित्र" में लिखा है कि रत्नसेन के सिंहल पहुँचने के समय वहाँ के राजा ने अपनी बहन पद्मिनी के विवाह के लिये ढिंढोरा पिटवाया था जिसका वर्णन कवि इस प्रकार करता है
"नगर मध्य आया तिसैरे, ढंढेरा ना ढोल रे । राजा वाजा सांभली रे, बोले एहवा बोल रे ॥ पड़ह छबी ने पुछीयो रे, ढोल वाजे कि काज रे । तब बोल्या चाकर तिसे रे, वात सुणे महाराज रे ॥ सिंघल दीपनेा राजीयो रे, सिंघल सिंह समान रे तशु बहण छै पदमिणी रे, रूपे रंभ जोबन लहरथां जायछै रे, ते परखै परतंग्या जे पूरवे रे, ताशु वरें जीएँ बांधवै नेजि डोरे, ते परखै
I
समान रे ॥
भरतार रे ।
वरमाल रे ॥
भरतार रे ।
तिण कारण मुफ राजीए रे, पड़ह दीयो इण वात रे ॥"
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com