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गोरा बादल की बात
१६१ "पटराणी परभावती रूपे रंभ समान । देखत सुरी न किसरी प्रसी नारि न आन ।। चंद्रवदन गजराजगति पनगवेणि मृगनैन । कटि लचकति कुचमार ते रति अपछर है एन । राणी अवर राजा तणेजी रूप निधान अनेक ।
पणि मनड़ो परभावतीजी रंज्यो करी विवेक " इस रानी से राजा को वीरभाण नाम का प्रतापो पुत्र भी उत्पन्न हुआ था। एक दिन भोजन के समय राजा ने परमावती से भोजन अच्छा न बनने की शिकायत की। इस पर रानी ने रोष करके कहा
"तब तड़की बोली तिसेजी, राखी मन धरि रोस । नारी प्राणो का न बीजी, थो मत झूठो दोस । हमे केलवी जाणां नही जी, कि सू करीजै वाद ।
पदमणि का परणो न बीजी, जिम भोजन है स्वाद ।।" रानी के ऐसे वचन सुनकर कि मेरा भोजन पसंद नहीं है तो किसी पद्मिनी स्त्री से विवाह क्यों नहीं कर लेते, राजा रत्नसेन को भी क्रोध आ गया। भोजन करना छोड़कर वह उसी तण खड़ा हो गया और कहने लगा--
"राणो तो हूँ रतनसी परणु पदमनि नारि । मो सातो बोलै मुन्हे जे मैं राख्यो मान ।
परणु तरुणी पदमनी गालूं तुम गुमान ॥" इस कारण राजा एक खवास को साथ लेकर पद्मिनी स्त्री लाने के लिये चल दिया।
(२) जायसी के अनुसार राजा स्वयं कष्ट उठाता हुआ, बिना किसी योगी की सहायता के, सिंहल पहुँचता है। जटमल का कथन है कि चिचौड़ में ही राजा को एक योगी मिल गया। योगी
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