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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
राणा जगतसिंहजी की माता जांबवतीजी के प्रधान श्रावक हंसराज के भाई डूंगरसी के पुत्र लालचंद ने "पद्मनी - चरित्र" की रचना की थी । कवि ने ग्रंथ निर्माण आदि का वर्णन इस प्रकार
किया है :--
" संवत सतरै बिडौतरे, श्री उदयपुर सु वखाण । हिंदुपति श्री जगतसिंह जिरे, राज करे जग भाग ॥ तासु तणीं माता श्री जांबवती कहीरे, निरमल गंगा नीर । पुण्यवंत घट दरसण, सेवक करें सदारे धर्ममूरति मतधीर ॥ तेह्र तणां परधान जगत में जांणीपैरे, अभिनव अभयकुमार | केसर मंत्री सरश्रुत श्ररि करि केसरी रे, हंसराज तासीर ॥ तसु बंधव डूगरसी ते पण दीपतारे भागचंद कुल भाग । विनयवंत गुणवंत सोभागी सेहरे बड़दाता गुण जाण ॥ तासु सुत श्राग्रह करि संवत सतरे सतोतरे चैत्री पूनम शनिवार । नव रस सहित सरस सबंध नवो रच्येारे निज बुध ते अनुसार ॥" ग्रंथकर्ता का नाम लक्षोदय अथवा लालचंद था । ग्रंथ में जगह जगह "लक्षोदय कहै" अथवा "लालचंद कहै " लिखा मिलता है ।
ग्रंथकर्ता तथा ग्रंथ-निर्माण-काल का परिचय देने के पश्चात् "पद्मनी - चरित्र" की और पदमावत तथा गोरा बादल की बात की कथाओं में जो मुख्य मुख्य भेद हैं वे दिखाए जाते हैं।
( १ ) जायसी हीरामन तोते के द्वारा पद्मिनी का रूप सुनकर रत्नसिंह का उस पर मोहित होना लिखता है । जटमल भाटों द्वारा पद्मिनी के रूप- गुण का वर्णन कराकर राजा का मोहित होना लिखता है । इन दोनों के विरुद्ध पद्मनी चरित्र का कर्ता रत्नसिंह का पद्मिनी की खोज में जाने का तीसरा ही कारण बतलाता है । रत्नसिंह की अनेक रानियाँ थीं परंतु उनमें से पटरानी परभावती पर राजा का सबसे अधिक स्नेह था --
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