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विविध विषय
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वज्रांकुश की राजधानी का नाम रत्नावती था । उसे यहाँ से सौ कोस की दूरी पर मयासुर ने बसाया था । राजा को नर्मदा ने बतलाया कि उसी नगरी के मार्ग पर बंकु मुनि का आश्रम है । उनसे भेंट करना ।
उस
दशम सर्ग में राजा और मंत्री का वाद-विवाद है । समय एक शुक पक्षी आकर मनुष्य वाणी में कहता है- 'मैं शंखचूड़ नाम की नाग-जाति का' रत्नचूड़ नामक नाग हूँ । दैव-दुर्वि - पाक से शाप - ग्रस्त हो 'शुक' योनि में आ गया हूँ। यदि आप (सिंधुराज.) शशिप्रभा के लिये मुझे कोई संदेश दे सकेंगे तो मेरा शापमोचन हो जायगा । इस पर सिंधुराज सहर्ष संदेश दे देता है ।
एकादश सर्ग में सिंधुराज रत्नावती नगरी में जाने के लिये पाताल लोक को प्रस्थान करते हैं । रास्ते में पूर्वोक्त वंकु मुनि से भेंट होती है । वंकु मुनि के समक्ष प्रवास प्रयोजन और परमार वंशराजकथा-क्रम वर्णन किया जाता है। मुनि से सफलता की आशा पाकर राजा वहीं विश्राम करता है ।
द्वादशसर्ग में राजा को स्वप्न में शशिप्रभा के दर्शन होते हैं । वह प्रेमालाप करते हुए आनंदांदोलित हो जाता है। इसी समय वृक्ष पर बैठा हुआ शुक पक्षी सामगान कर निद्रा भंग कर देता है । राजा पुनः आँखें मूँदकर स्मृति को जागरित करने का व्यर्थ प्रयास करने लगता है; किंतु विफलता से खिन्न हो जाता है ।
"लिखित इव स क्ष्मापालाऽभूत् क्षणं ननु तादृशाम् । श्रपि मनसिजो धैर्य लुम्पत्य हो, वत, साहसम्” ॥ ८१ ॥ त्रयोदशसर्ग में विद्याधराधीश से राजा की भेंट होती है। विद्याघर जाति एक का राजा मुनि के शाप-वश वानर हो गया था । वह अपना कष्ट राजा से कहता है । राजा नर्मदा प्रदत्त कर-कंकण
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